कोरोना वायरस का संक्रमण फिर तेजी से पांव पसारने लगा है। इसी बीच पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव भी कराए जाने हैं। इसे ध्यान में रखते हुए केंद्र व राज्य सरकार ने हेल्थ केयर वर्कर (डाक्टर, पैरामेडिकल कर्मचारी) और फ्रंटलाइन वर्कर (पुलिस-प्रशासनिक अधिकारी व कर्मचारी) को बूस्टर डोज लगाने का निर्णय लिया है। बूस्टर डोज की प्रामाणिकता को लेकर इजरायल में रिसर्च में 8,43,208 लोग लिए गए। इनमें 7,58,118 लोग फिट पाए गए। इससे करीब 90 प्रतिशत पर कोरोना की बूस्टर डोज प्रभावी साबित हुई। रिसर्च को न्यू इंग्लैंड जर्नल आफ मेडिसिन ने प्रकाशित किया है।
देश में बूस्टर डोज की तैयारी के बीच आए इस शोध पर इंडियन एसोसिएशन आफ मेडिकल माइक्रोबायोलाजी की आनलाइन मीटिंग में चर्चा हुई। इसमें जीएसवीएम मेडिकल कालेज के प्रो. विकास मिश्रा भी जुड़े। प्रो. मिश्रा का कहना है कि बूस्टर डोज संक्रमण से सुरक्षा करने के साथ ही उसकी गंभीरता व मृत्युदर के खतरे को कई गुणा कम करती है। बूस्टर डोज कोरोना के खिलाफ जंग में रामबाण साबित होगी।
कोरोना से बचाव के लिए भारत समेत विश्व में वैक्सीनेशन अभियान चल रहा है। पहले चरण में हेल्थ वर्कर व इलाज व्यवस्था से जुड़े लोगों का वैक्सीनेशन कराया गया। हालांकि, समय-समय पर कोरोना वायरस रूप बदल रहा है, उसके नए-नए वैरिएंट आने से विशेषज्ञ बूस्टर डोज लगाने का सुझाव पहले से दे रहे हैं। इसकी गंभीरता को देखते हुए हुए इजरायल के कम्युनिटी मेडिकल सर्विस डिवीजन के रोनेन अरबल और उनकी टीम ने यह शोध किया। बूस्टर डोज लगाने के बाद छह अगस्त से 29 सितंबर तक संबंधित लोगों की निगरानी की गई। 57 दिन तक निगरानी के उपरांत पाया गया कि इन पर बूस्टर डोज 90 प्रतिशत तक प्रभावी साबित हुई।
बूस्टर डोज के रिसर्च के अहम तथ्य
10 गुणा संक्रमण के खतरे को कम करती है, वैक्सीन लगवाने वालों की तुलना में।
18 गुणा संक्रमण के गंभीर खतरे को कम करती है 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में।
22 गुणा संक्रमण के गंभीर खतरे को कम करती है 40-59 वर्ष के लोगों में।
90 गुणा मृत्यु दर के खतरे को कम करती है, वैक्सीनेशन कराने वालों की तुलना में।
–ओमिक्रोन के खतरे के बीच बूस्टर डोज की शुरुआत 10 जनवरी से होनी है। हेल्थ केयर वर्कर, फ्रंटलाइन वर्कर व 60 वर्ष से अधिक उम्र के बुजुर्गों को लगाई जाएगी। इजरायल में हुआ रिसर्च बूस्टर डोज का महत्व बताता है, जिसे 23 दिसंबर, 2021 को अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल में प्रकाशित किया गया है। -डा. विकास मिश्रा, प्रोफेसर, माइक्रोबायोलाजी विभाग, जीएसवीएम मेडिकल कालेज।