पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि अदालतों को सामान्य तौर पर वरिष्ठ अधिकारियों को तलब करने से बचना चाहिए। किसी जिले में उपायुक्तों (डीसी) द्वारा पारित आदेशों के संबंध में किसी भी दस्तावेज को अदालत के समक्ष उसके रीडर द्वारा सत्यापित किया जा सकता है।
हाई कोर्ट ने यह आदेश भिवानी कोर्ट द्वारा एक आपराधिक मामले में डीसी द्वारा दी गई अभियोजन मंजूरी को सत्यापित करने के लिए जिले के तत्कालीन डीसी को तलब करने के आदेश को खारिज करते हुए दिए हैं। हाई कोर्ट ने कहा कि अदालतों को आमतौर पर वरिष्ठ अधिकारियों को नहीं बुलाना चाहिए।
हाई कोर्ट ने कहा कि केवल असाधारण मामलों में उन्हें बुलाया जाना चाहिए। वर्तमान मामले में चूंकि दस्तावेज एक सार्वजनिक दस्तावेज है, इसलिए मूल रिकार्ड को अदालत के अवलोकन के दौरान इसे रीडर द्वारा स्थापित किया जा सकता है। ऐसे मामलों में सर्वोच्च न्यायालय इस तरह के कई आदेश पारित किए जा चुके हैं।
हाई कोर्ट के जस्टिस अरविंद सिंह सांगवान ने हरियाणा सरकार द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किए हैं। राज्य सरकार ने अपनी याचिका में भिवानी की स्थानीय अदालत द्वारा पारित 31 अक्टूबर, 2017 और 21 नवंबर, 2017 के आदेशों को रद करने के निर्देश मांगे थे। स्थानीय अदालत ने एक आपराधिक मामले में भिवानी के तत्कालीन डीसी को दस्तावेज को सत्यापित करने के लिए पेश होने का आदेश दिया था।
अपनी याचिका में प्रदेश सरकार ने तर्क दिया कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 76/77 के तहत तैयार किए गए स्वीकृत आदेश की एक प्रमाणित प्रति हमेशा जिला मजिस्ट्रेट के रीडर द्वारा मूल रिकार्ड पेश करके साबित की जा सकती है। जिला मजिस्ट्रेट को समन करने की आवश्यकता नहीं होती। इसलिए इस आदेश को रद किया जाना चाहिए।
सभी पक्षों को सुनने के बाद हाई कोर्ट ने भिवानी कोर्ट द्वारा तत्कालीन डीसी को गवाह के तौर पर तलब करने के आदेश को खारिज कर दिया और आदेश दिया कि रीडर द्वारा डीसी की तरफ पेश किए गए सबूतों के साथ ट्रायल आगे बढ़ सकता है।