उत्‍तराखंड में दुष्कर्म के मामलों में लगातार हुई बढ़ोतरी तो वहीं डीजीपी ने ऐसे मामलों पर तुरंत कार्रवाई करने के दिए निर्देश 

प्रदेश में दुष्कर्म के मामलों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। 2020 के मुकाबले 2021 में दुष्कर्म, किशोरियों के साथ छेड़छाड़, दुष्कर्म व पोक्सो, अपहरण, कुकर्म और शादी का झांसा देकर दुष्कर्म करने के मामलों में 37 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। हालांकि दुष्कर्म, पोक्सो व अपहरण के मामलों को पुलिस ने गंभीरता से लिया है। 2020 व 2021 में क्रमश: एक-एक लंबित केस है।

दुष्कर्म, पोक्सो व अपहरण के मामलों को लेकर पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार की ओर से तुरंत कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए हैं। हर थाने में इसके लिए अलग से हेल्प डेस्क बनाई गई है। वर्ष 2020 में प्रदेश में दुष्कर्म, पोक्सो, अपहरण व कुकर्म के 781 मामले सामने आए। वहीं, 2021 में इस प्रकार के 1071 मामले दर्ज हुए हैं। वर्ष 2022 में 31 मार्च तक 268 मुकदमे दर्ज हो चुके हैं।

नाबालिग के साथ घटनाओं में तेजी

वर्ष 2020 के मुकाबले 2021 में नाबालिग के साथ दुष्कर्म व अन्य धाराओं के साथ पोक्सो के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2020 में 368 किशोरियों के साथ दुष्कर्म व पोक्सो, 211 के साथ छेड़छाड़ व अपहरण के मुकदमे दर्ज किए गए। वहीं, वर्ष 2021 में दुष्कर्म व पोक्सो के 466, छेड़छाड़, अपहरण व अन्य धाराओं के तहत 328 मुकदमे दर्ज हुए हैं। इसी तरह 2022 में 31 मार्च तक दुष्कर्म व पोक्सो के 124, छेड़छाड़, अपहरण व अन्य धाराओं के तहत 68 मुकदमे दर्ज किए गए।

वर्ष-2020

कुल मुकदमे -781

केवल दुष्कर्म -202

दुष्कर्म एवं पोक्सो-368

छेड़छाड़ व अपहरण (पोक्सो)- 211

वर्ष – 2021

कुल मुकदमे -1071

केवल दुष्कर्म – 275

दुष्कर्म एवं पोक्सो- 466

छेड़छाड़ व अपहरण (पोक्सो)- 328

वर्ष – 2022 (31 मार्च तक)

कुल मुकदमे -268

केवल दुष्कर्म -76

दुष्कर्म एवं पोक्सो-124

छेड़छाड़ व अपहरण (पोक्सो)- 68

-अशोक कुमार (पुलिस महानिदेशक उत्तराखंड) ने कहा है कि केस बढ़ने के कई कारण हैं। बड़ा कारण इंटरनेट मीडिया पर जल्द संपर्क होने के चलते इन मामलो में बढ़ोतरी हुई है। इसके अलावा रिपोर्टिंग बढ़ने के चलते मुकदमों की संख्या में बढ़ी है।

पुलिस अधिकारियों व कर्मचारियों को ऐसे केस तुरंत रजिस्टर करने के निर्देश जारी किए गए हैं। इसके अलावा ऐसे केस को गंभीरता लेने को भी कहा है। यही कारण है कि जिस गति से मुकदमे दर्ज हो रहे हैं, उसी गति से उनका निस्तारण किया जा रहा है।

डा. जया नवानी, एसोसिएट प्रोफेसर (मनोचिकित्सक), दून अस्पताल ने कहा कि उम्र के साथ जिन बच्चों का मानसिक विकास नहीं होता, वह ऐसे अपराध के शिकार हो सकते हैं। तनावपूर्ण घरेलू वातावरण, प्रौद्योगिकी का अनियंत्रित उपयोग, दिन भर इंटरनेट पर जुटे रहना और जो बच्चे यह महसूस करते हैं कि वह अपने माता-पिता के साथ विचार विमर्श नहीं कर सकते वे अलग-थलग और असुरक्षित हो सकते हैं, वह भी ऐसे अपराध की चपेट में आ सकते हैं।

-अल्का सूरी, प्रोफेसर (समाज शास्त्री), डीबीएस पीजी कालेज का कहना है कि बच्चों के खिलाफ अपराध करने के आरोपित या दोषी की पहचान सार्वजनिक रूप से प्रकट की जानी चाहिए।

इसके अलावा पीड़ि‍तों के अधिक से अधिक सहायता केंद्र बनाए जाएं, स्कूलों में अनुशासन के लिए परिषदें बनाए जो बच्चों के संगठनों के साथ साझेदारी में काम कर सकें, सभी अभिभावकों को बाल अधिकारों और मौजूदा कानूनों से अवगत कराया जाए, जोकि बच्चों की सुरक्षा के लिए लागू है, शिक्षण संस्थान में शिक्षकों की जवावदेही अनिवार्य की जानी चाहिए और परिवारों और समुदाय को शिक्षित व सशक्त बनाया जाना चाहिए ताकि वे अपने बच्चों की देखभाल और सुरक्षा प्रदान कर सकें।

इन बातों पर दें ध्यान

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