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भारत और आस्‍ट्रेलिया के बीच टू प्‍लस टू मंत्रिस्‍तरीय वार्ता पर चीन की है पैनी नजर, टू प्‍लस टू संवाद से आस्‍ट्रेलिया के साथ संबंधों में आई मिठास

भारत और आस्‍ट्रेलिया के बीच टू प्‍लस टू मंत्रिस्‍तरीय वार्ता पर चीन की पैनी नजर है। टू प्‍लस टू वार्ता के क्‍या निहितार्थ हैं। दोनों देशों के बीच इस वार्ता में चीन की क्‍या दिलचस्‍पी होगी। दरअसल, दक्षिण एशिया में अफगानिस्‍तान में अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद काबुल पर तालिबान का कब्‍जा, अफगानिस्‍तान में चीन और पाकिस्‍तान की बढ़ती दिलचस्‍पी। हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन का बढ़ता दखल और भारत-चीन संबंधों में उत्‍पन्‍न हुई कटुता को देखते हुए दोनों देशों के बीच यह वार्ता काफी अहम मानी जा रही है। आइए जानते हैं विशेषज्ञों की राय कि बदलते अंतरराष्‍ट्रीय परिदृष्‍य में यह वार्ता कितनी कारगर और सार्थक होगी।

एक नए परिवेश में सार्थक रही दोनों देशों के बीच संवाद

मोदी की ऐक्ट ईस्ट नीति से भारत को बेहद फायदा

1- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ऐक्ट ईस्ट नीति से भारत को बेहद फायदा हुआ है। पीएम मोदी और आस्‍ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्काट मारिसन के बीच दोस्ती ने इन संबंधों में काफी मिठास घोली है। अगर क्वाड के चारों देशों के बीच अलग-अलग द्विपक्षीय संबंधों पर गौर किया जाए तो साफ दिखता है कि इन तमाम समीकरणों में भारत और आस्‍ट्रेलिया के संबंध सबसे कमजोर नजर आते रहे हैं।

2- यह आस्‍ट्रेलिया ही था जिसने एक दशक से ज्यादा पहले क्वाड से यह कहकर हाथ जोड़ लिए थे कि वह चीन को नाराज नहीं करना चाहता। आस्‍ट्रेलिया के अमेरिका और जापान के साथ पहले से ही सैन्य और परमाणु सुरक्षा से जुड़े समझौते थे। साफ है कि सवाल सिर्फ भारत का था और भारत और चीन के बीच तब आस्‍ट्रलिया ने चीन को चुना था।

3- 1998 का भारत का परमाणु परीक्षण के बाद आस्‍ट्रेलिया का व्यवहार सबसे रूखा और गैरजरूरी था। हालांकि, जापान और अमेरिका ने अपनी प्रतिक्रिया में कूटनीतिक शिष्टाचार दिखाया था। आस्‍ट्रेलिया तब कुछ ज्यादा ही परेशान हो उठा था और उसने स्टाफ कोर्स कर रहे भारतीय सेना के अफसरों को वापस भेजने का बेजा कदम उठाया था। इस लिहाज से पिछले कुछ साल से भारत और आस्‍ट्रलिया के बीच संबंध काफी अच्छे रहे हैं।

आखिर क्‍या है एक्‍ट ईस्‍ट पालिसी

वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की एक्‍ट ईस्‍ट पालिसी एशिया-प्रशांत क्षेत्र में मौजूद देशों के भी सहभागिता को बढ़ावा देने के मकसद से लाई थी। इस नीति ने पूर्व सरकारों की ओर से लुक ईस्‍ट की नीति को एक कदम आगे बढ़ाया था। इस नीति को जब शुरू किया गया तो इसे एक आर्थिक पहल के तौर पर देखा गया था, लेकिन अब इस नीति ने एक राजनीतिक, रणनीतिक और सांस्‍कृतिक अहमियत भी हासिल कर ली है। इसके तहत देशों कें बीच बातचीत और आपसी सहयोग को बढ़ाने के लिए एक तंत्र की शुरुआत भी कर दी गई है। भारत ने इस नीति के तहत इंडोनेशिया, विएतनाम, मलेशिया, जापान, रिपब्लिक अाफ कोरिया, आस्‍ट्रेलिया, सिंगापुर और आसियान देशों के साथ ही एशियाई-प्रशांत क्षेत्र में मौजूद देशों के साथ संपर्क को बढ़ाया है।

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