अपने कपड़ों की साफ-सफाई के लिए हम सभी वाशिंग पाउडर का इस्तेमाल जरूर करते हैं। पर क्या आपको पता है की ऐसे बहुत से वाशिंग पाउडर जिन्हे हम सिर्फ विज्ञापन देख कर खरीदते हैं कितने हानिकारक होते हैं?
आइए पहले जानते हैं कि यह वाशिंग पाउडर काम कैसे करते है?
वाशिंग पाउडर में सर्फेक्टेंट्स होते हैं जो पानी की सतह पर टेंशन (Surface Tension) को कम करते हैं, जिससे पानी कपड़ों के रेशों तक पहुँच पाता है। इससे गंदगी और धूल को कपड़ों से हटाने में मदद मिलती है।
यही सर्फेक्टेंट्स कपड़ों के रेशों तक जा कर गंदगी और तेल को हटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जो केवल पानी से साफ नहीं हो सकते।
वाशिंग पाउडर और डिटर्जेंट्स में अक्सर फॉस्फेट्स, सल्फेट्स, और ब्लीच जैसे हानिकारक रसायन होते हैं। ये रसायन त्वचा और पर्यावरण के लिए हानिकारक हो सकते हैं।
वाशिंग पाउडर में मौजूद केमिकल्स त्वचा पर जलन, खुजली, और रैशेज पैदा कर सकते हैं। संवेदनशील त्वचा वाले लोगों को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए।
नकारात्मक प्रभाव
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लगातार वाशिंग पाउडर का उपयोग कपड़ों के रंग और रेशों को कमजोर कर सकता है। इससे कपड़े जल्दी खराब हो सकते हैं।
नकारात्मक प्रभाव
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वाशिंग पाउडर में फॉस्फेट्स और अन्य रसायन होते हैं जो पानी के स्रोतों में जाने पर जलीय जीवन के लिए हानिकारक हो सकते हैं और जल प्रदूषण का कारण बनते हैं।
नकारात्मक प्रभाव
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बाजार में कई स्वस्थ और सुरक्षित विकल्प उपलब्ध हैं जो पर्यावरण और त्वचा के लिए कम हानिकारक हैं। इनमें प्राकृतिक और जैविक उत्पाद शामिल हैं।
सिरका, बेकिंग सोडा, और नींबू का रस कुछ ऐसे घरेलू उपाय हैं जो कपड़ों को प्रभावी ढंग से साफ करने में मदद करते हैं। ये प्राकृतिक होते हैं और त्वचा या पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाते।
विकल्प: 1
बायोडिग्रेडेबल डिटर्जेंट्स पर्यावरण के लिए सुरक्षित होते हैं क्योंकि वे प्राकृतिक रूप से टूट जाते हैं और जल प्रदूषण का कारण नहीं बनते।
विकल्प: 2
साबुन के नट्स (रीठा) एक प्राकृतिक क्लीनिंग एजेंट हैं जो सैपोनिन नामक रसायन छोड़ते हैं, जो गंदगी और तेल को हटाने में प्रभावी होता है।
विकल्प: 3
कई ब्रांड्स अब इको-फ्रेंडली डिटर्जेंट्स बना रहे हैं जो त्वचा और पर्यावरण के लिए सुरक्षित हैं। इन्हें अपनाना एक अच्छा विकल्प हो सकता है।
स्वस्थ और सुरक्षित डिटर्जेंट का चयन करते समय, लेबल पढ़ें और यह सुनिश्चित करें कि उत्पाद में हानिकारक रसायन नहीं हैं। प्राकृतिक और जैविक उत्पादों को प्राथमिकता दें।