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वानर का शाब्दिक अर्थ है - वन में रहने वाले लोग। समय के साथ ये अर्थ लुप्त हो गया और बन्दर को ही वानर कहा जाने लगा।

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जिन वानरों का उल्लेख रामायण में है, वे युद्ध कला में निपुण, अपना आकार बदलने वाले और साहसी थे। उनकी शक्तियों और सिद्दियों का वर्णन  रामायण में मिलता है।

सूर्य के पुत्र व किष्किंधा नरेश।

सुग्रीव 

वाली के पुत्र, सुग्रीव के उत्तराधिकारी, भगवान हनुमान के उपनेता और वानर सेना के प्रमुख। लंका में रावण इनके पाँव को हिला नहीं पाया था। 

अंगद

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श्री हनुमान के पिताजी व  महाराज सुग्रीव के सेनापति।  

केसरी

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भगवान राम के अग्रदूत और सेनानायक। श्री हनुमान ने अनेक महत्वपूर्ण कार्यों को संपन्न किया, जैसे कि माता सीता का पता लगाना, लंका में अग्नि लगाना, और भगवान राम के संदेश को लेकर लौटना।

श्री हनुमान

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वानर राजा और वानर सेना के वृद्ध नेता।

सुषेण

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विश्वकर्मा के पुत्र और तकनीक के ज्ञानी थे। नल ने ही बड़ी कुशलता से श्रीराम के लिए सेतु का निर्माण किया था।

नल

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वानर सेना के प्रमुख विमानशिल्पी और नल के भाई। नल-नील जिस भी वस्तु को पानी में फेंकते थे, वह कभी पानी में नही डूबती थी। सेतू के निर्माण में इनकी  महत्वपूर्ण भूमिका थी । 

नील

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महाराज सुग्रीव के मंत्री थे।

द्विविदा

एक शक्तिशाली गोरिल्ला राजा थे।

मैंदा

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