भारत के विभिन्न क्षेत्रों में भोजन पकाने के लिए कई तरह के तेलों का इस्तेमाल होता है।
उत्तर भारत में सरसों का तेल एक मुख्य तेल के तौर पर इस्तेमाल होता है।
यह तेल भी पीली और काली सरसों के रूप में दो श्रेणियों में विभाजित हो जाता है। आइये जानते हैं क्या अंतर हैं दोनों तेलों में।
पीली सरसों का तेल सिनापिस अल्बा नाम के पीली सरसों के पौधे के बीजों से बनाया जाता है।
काली सरसों का तेल ब्रैसिका निग्रा नाम के काली सरसों के पौधे के बीजों से बनाया जाता है।
पीली सरसों का तेल हल्का और कम तीखा और कुछ अखरोट जैसा स्वाद लिए हुए होता है।
काली सरसों का तेल स्वाद में तीखा और तेज़ होता है और इसमें एक विशिष्ट तीखी सुगंध और झांस होती है।
पीली सरसों का तेल ओमेगा-3 और ओमेगा-6 फैटी एसिड सहित मोनोअनसैचुरेटेड और पॉलीअनसैचुरेटेड फैट से भरपूर होता है। जो हृदय स्वास्थ्य में योगदान करते हैं, सूजन को कम करते हैं और मस्तिष्क के कार्य को सहायता प्रदान करते हैं।
काली सरसों के तेल भी पीली सरसों की तरह ही हैल्थी फैट्स से भरपूर होता है और इसमें ग्लूकोसाइनोलेट नामक यौगिक भी होता है, जो इसे इसका विशिष्ट स्वाद देता है। ग्लूकोसाइनोलेट्स एंटीऑक्सीडेंट और सूजनरोधी गुणों के लिए जाने जाते हैं।
पीली सरसों के तेल का स्मोक पॉइंट लगभग 190°C होता है, जिससे यह मध्यम तापमान पर पकाने के लिए अच्छा है।
काली सरसों के तेल का स्मोक पॉइंट लगभग 250°C होता है, जिससे यह डीप फ्राई और उच्च तापमान पर पकाने के लिए उपयुक्त है।
पीली और काली दोनों ही सरसों के तेल भारतीय रसोई का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उनके अलग-अलग गुण और फायदे हैं, जो आपके स्वास्थ्य और व्यंजनों को बेहतर बनाते हैं।