लखनवी कथक के पर्याय पंडित बिरजू महाराज का 83 वर्ष की उम्र में दिल्ली में हार्ट अटैक से हुआ निधन

लखनवी कथक के पर्याय पंडित बिरजू महाराज का 83 वर्ष की उम्र में दिल्ली में हार्ट अटैक से निधन हो गया। उनके निधन से कला प्रेमियों में गहरा शोक है। पंडित बिरजू महाराज लखनऊ के कालका बिंदादीन घराने के सदस्य थे। उनका पूरा नाम बृज मोहन नाथ मिश्र था। उनका जन्म चार फरवरी 1937 को लखनऊ में हुआ था। उनके निधन पर लोक गायिका मालिनी अवस्थी ने कहा कि आज भारतीय संगीत की लय थम गई। सुर मौन हो गए। भाव शून्य हो गए। कथक के सरताज पंडित बिरजू महाराज नहीं रहे। लखनऊ की ड्योढ़ी आज सूनी हो गई। कालिका बिंदादीन जी की गौरवशाली परपरंरा की सुगंध विश्व भर में प्रसारित करने वाले महाराज जी अनंत में विलीन हो गए।

पंडित बिरजू महाराज नृतक होने के साथ ही एक उम्दा गायक भी थे। हाल ही में लखनऊ आगमन पर उन्होंने उप्र संगीत नाटक अकादमी के मंच से अपनी कविताएं भी सुनाई थीं। बिरजू महाराज के पिता और गुरु अच्छन महाराज, चाचा शंभु महाराज और लच्छू महाराज भी प्रसिद्ध नर्तक थे। लखनऊ और कथक एक दूसरे के प्रतिबिंब स्वरूप हैं। कथक, लखनऊ घराने के प्राण जहां बसे हैं, वह गोलागंज में कालका बिंदादीन ड्योढ़ी है। 1856 की इस ड्योढ़ी की दर-ओ-दीवार पर कथक बसा है। कथक नृत्य की तीर्थस्थली कालका बिंदादीन ड्योढ़ी जो आज उत्तर प्रदेश के संस्कृति निदेशालय के अंतर्गत कथक म्यूजियम के रूप में विद्यमान है। यह ड्योढ़ी अपने वर्तमान स्वरूप में कथक के इतिहास की अनेक गाथाएं स्वयं में समेटे हुए खड़ी है। गुरु शिष्य परंपरा के तहत यहीं पर ना जाने कितने ही दिग्गजों ने कथक को आत्मसात किया। इसके आंगन में आज भी लगा अमरूद का पेड़ कला साधकों के तप का साक्षी है। इस ड्योढ़ी के सामने वाले कमरे में साधनारत रहकर कला मूर्धन्यों ने लखनऊ घराने के कथक को जीवंतता दी। कला प्रेमी इस दहलीज की माटी को सिर माथे लगा विदेश तक लेकर गए।

पंडित बिरजू महाराज ने दो अप्रैल 2014 को ड्योढ़ी काे एक रुपये टोकन लीज पर संस्कृति विभाग को हस्तांतरित कर दिया था। इसके बाद संस्कृति विभाग ने आवास विकास परिषद को इसके जीर्णोद्धार की जिम्मेदारी सौंपी। खंडहर हो चुकी इस ड्योढ़ी में आज लखनऊ के कथक घराने का पूरा इतिहास संग्रहालय के माध्यम से दर्शाया गया है। चित्रों के जरिए से कथक के गौरवशाली इतिहास के साथ ही मंदिर, रसोई और पारंपरिक वेशभूषा को भी दिखाया गया है। लखौरी ईंटों व चूने से बनी यह ड्योढ़ी कथक साधकों के लिए तपोस्थली है। आमजन सुबह दस से शाम पांच बजे तक, सोमवार छोड़कर संग्रहालय का अवलोकन कर सकते हैं।

कथक का गौरवशाली इतिहास : पंडित बिरजू महाराज के पूर्वज ठाकुर प्रसाद, दुर्गा प्रसाद तथा मान सिंह कथक कला में निपुण थे। अवध के नवाब अमजद अली शाह ने इनकी कला से प्रभावित होकर यह ड्योढ़ी उनके निवास स्थान के रूप में दी। इसके बाद अवध के पांचवें नवाब वाजिद अली शाह 1847-56 के समय लखनऊ घराने की कथक कला चरम पर पहुंची। अवध के नवाबों की कलाप्रियता ने भरत के अलग-अलग क्षेत्रों से, जिसमें कश्मीर के भांड, ब्रज के रास लीलाधारी, दिल्ली से मुगल शैली के नृत्यकारों को 1754 में लखनऊ में बसाया।

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