जान‍िए कौन हैं तृप्‍ता शर्मा, आर्थ‍िक चुनौत‍ियों को मात देकर सैकड़ों मह‍िलाओं को द‍िलाया रोजगार

पैर न पड़े ब‍िवाई वो क्या जाने पीर पराई… यह कहावत लखनऊ के आलमबाग निवासी तृप्ता शर्मा पर बिल्कुल सटीक बैठती है। आर्थिक तंगी को करीब से निहारने वाली तृप्ता ने गरीबी और आर्थिक तंगी के दर्द को न केवल जीवन में देखा है, बल्कि दूसरों में महसूस भी किया है। डेढ़ दशक पहले आर्थिक विपन्नता की भंवर में फंसी तृप्ता शर्मा अब अपनी जैसी महिलाओं को काम सिखाकर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने का काम कर रही हैं।

घर ही चहारदीवारी से दूर होकर खुद के साथ दूसरों को काम सिखाना उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन गया है। बाजार से खड़े मसाले लाकर उसे सुखाना और फिर रात में पीस कर पैकेट बनाना। सुबह बच्चों को स्कूल छोड़ना और फिर पति का टिफिन तैयार करना। बच्चों और पति के बाहर जाते ही खुद झोला उठाना और घर-घर मसाले बेचना। दोपहर में घर आना फिर बच्चों को भोजन करना और फिर महिलाओं को ट्रेनिंग। कुछ ऐसी दिनचर्या है तृप्ता शर्मा की।

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आलमबाग की रहने वाली तृप्ता शर्मा का कहना है कि पति की प्राइवेट नौकरी और बच्चों को पालने की चुनौती को स्वीकार कर घर की चहारदीवारी से बाहर आकर काम को तरजीह दी। मेहनत का फल देर में मिलता है, लेकिन मिलता जरूर है, बस इसी मंशा को लेकर काम शुरू किया और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। मसाले के साथ पापड़ बनाना और फेस पैक बनाने की पहले खुद फिर अन्य महिलाओं को ट्रेनिंग देनी शुरू कर दी। एक हजार महिलाएं अब उनके हुनर को सीख अपने घर का खर्च चला रही हैं। वह भी खुद पति के साथ मिलकर अपने काराेबार काे बढ़ाने में लगी हैं। घर की चहार दीवारी से दूर काम करके महिलाएं न केवल आठ से 10 हजार रुपये महीना कमा रही हैं बल्कि बच्चों को अच्छी शिक्षा भी दे रही हैं। तृप्ता शर्मा को हाल ही उत्कृष्ट स्वयं सहायता समूह की महिला हाेने के लिए शक्ति अवार्ड भी मिला है। राज्यपाल आनंदी बेन पटेल से उन्हें अवार्ड दिया था।

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300 को स्वरोजगार और 100 युवतियों काे बना दिया ब्यूटीशियन : आर्थिक तंगी से जंग लड़ रही महिलाओं की बेटियों को भी वह हुनरमंद बनाने में जुटी हैं। जिला नगरीय विकास अभिकरण की मदद से 300 से अधिक महिलाओं को स्वयं सहायता समूह से जोड़ा तो अब तक 100 से अधिक युवतियों को कोर्स करा कर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा कर चुकी हैं। अब तो जिला नगरीय विकास अभिकरण की परियोजना अधिकारी निधि वाजपेयी भी उनके हुनर को लेकर काफी मदद करती हैं। तृप्ता शर्मा कहती कि मैं खुद के साथ यदि दूसरी महिलाओं को रोजगार देने में सक्षम हुई हूं तो इसके पीछे निधि वाजपेयी का बहुत योगदान रहा है। समूह बनाकर कर निश्शुल्क ट्रेनिंग देती हैं। ट्रेनिंग के बाद उन्हें ब्यूटी किट देकर रोजगार से जोड़ने का काम भी कर रही हैं। मनकामेश्वर मंदिर की महंत देव्या गिरि के सानिध्य में वहां भी महिलाओं को प्राकृतिक रंग बनाने का प्रशिक्षण देकर रोजगार से जोड़ा है।

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घर खर्च में बढ़ी भागीदारी : कानपुर रोड एलडीए कालाेनी निवासी प्रियंका कहना है कि तृप्ता शर्मा की ओर से ब्यूटीशियन की निश्शुल्क ट्रेनिंग के बाद अब मैं घर के खर्च में भागीदार बन गई हूं। पति के साथ ही परिवार के लोग भी खुश रहने लगे हैं। अकेली प्रियंका ही नहीं, निशा, आरती, मेहरून निशा, रेनू, रंजना व मालती समेत कई महिलाएं काम कर आर्थिक तंगी दूर कर रही हैं।

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हुनर के साथ पढ़ा रहीं समरसता का पाठ : हुनर के साथ वह समरसता का पाठ भी पढ़ा रही हैं। हिंदू, मुस्लिम समाज की महिलाओं को भी वह प्रशिक्षण देकर हुनरमंद बना देती हैं। तृप्ता का कहना है कि धर्म जाति से ऊपर उठकर आपके अंदर इंसानियत होनी चाहिए। इंसान के दर्द को महसूस करने की क्षमता हर मानव के अंदर होती है। कुछ छिपाते हैं और कुछ दिखाते हैं। इंसान कभी बुरा नहीं होता, परिस्थितियां उसे ऐसा बना देती हैं। सरकार की ओर निहारने के बजाय आप खुद अपना काम कर सकते हैं बस आपके अंदर इच्छा शक्ति होनी चाहिए।

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