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दिल्ली दरबार से यूपी पावर सेंटर का हमेशा रहा 36 का आंकड़ा! इतिहास गवाह है।

हिमांशु पुरी, सलाहकार संपादक

लखनऊ। दिल्ली दरबार से यूपी पावर सेंटर का हमेशा रहा है 36 का आंकड़ा! यह हम नहीं कह रहे इतिहास इसका गवाह है। दरअसल उत्तर प्रदेश देश की राजनीति की दिशा और दशा को तय करता है। ऐसा राजनैतिक पंडितों का भी मानना है और अब तक देश में बने सभी प्रधानमंत्रियों और उनकी पार्टियों ने भी इस बात को हू ब हू स्वीकार किया है। कमोबेश मौजूदा समय में भी स्थितियां कुछ ऐसी हैं और इसी को लेकर एक लंबे वक्त से मीडिया में यह बात निकल कर आ रही है कि लखनऊ का पावर सेंटर यानी कि सीएम योगी आदित्यनाथ केंद्र के लिए चुनौती बनते जा रहे हैं। केंद्र के द्वारा लिए गए निर्णयों को सहजता स्वीकार नहीं रहे हैं और इसी को लेकर एक बार फिर इस बात पर बहस छिड़ चुकी है कि क्या यूपी का पावर सेंटर दिल्ली दरबार को की बात मान नहीं रहा।

राजनीतिक पंडितों और विश्लेषकों की मानें तो इसकी शुरुआत आजादी के बाद से ही शुरू हो गई थी। जब उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड एक ही हुआ करते थे तभी से कुछ ऐसा नजारा लखनऊ और दिल्ली के बीच नजर आने लगा था। उस वक्त देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु हुआ करते थे और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत थे। तमाम मुद्दों पर इन दोनों के बीच सहमति नहीं होती थी। कई बार तकरार जैसी स्थितियां नजर आने लगती थी। उसी प्रकार उत्तर प्रदेश के अन्य मुख्यमंत्रियों जिनमें सीबी गुप्ता, हेमंती नंदन बहुगुणा, नारायण दत्त तिवारी, मुलायम सिंह यादव, कल्याण सिंह, मायावती, अखिलेश यादव और अब योगी आदित्यनाथ भी कूछ इसी स्थितियों से गुजरते दिखाई दे रहे हैं। नारायण दत्त तिवारी को भी कई बार केंद्र की तरफ से घेरने की कोशिश की जाती थी उनके ऊपर नजर बनाए रखी जाती थी। दरअसल नारायण दत्त तिवारी का कद जितना उत्तर प्रदेश में बड़ा था उससे कहीं बड़ा मौजूदा उत्तराखंड के हिस्से में था। लिहाजा केंद्र को हर वक्त यह डर सताता था कि कहीं केंद्र की कुर्सी पर नारायण दत्त तिवारी अपना हक जमाने का दवा ना ठोक दे वहीं ऐसा कुछ 1992 में मुलायम सिंह के मुख्यमंत्री रहते दिखाई दिया। जब केंद्र में वीपी सिंह की सरकार थी उस वक्त तमाम मुद्दों पर पीएम वीपी सिंह और पीएम मुलायम सिंह के बीच खिंचतान दिखाई दी। ऐसा ही कुछ नजारा मनमोहन सिंह सरकार और सूबे की सीएम मायावती के बीच दिखाई दिया। जब ताज कॉरिडोर के मामले में मायावती को घेरने की कोशिश की गई तो उन्होंने कांग्रेस पर हमला बोला। उसके बाद 2012 में यूपी के सीएम बने सबसे कम उम्र के सपा युवराज अखिलेश यादव को केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार से भी कई मुद्दों पर दो-चार होना पड़ा। लगातार बयानों में उसकी खींचतान दिखाई दी। वहीं अब 2017 में गोरक्षनाथ पीठ के पीठाधीश्वर कई बार सांसद रहे योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने पर उनका कद उत्तर प्रदेश की सियासत में और खासकर बीजेपी के अंदर इतना बढ़ गया है कि वह केंद्र को खटकने लगे है! जैसा की खबरों से निकलकर और मौजूदा यूपी बीजेपी में चल रहे घमासान के मद्देनजर इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि सीएम योगी आदित्यनाथ के भी तमाम निर्णयों पर अब केंद्र की मोदी सरकार की पूरी नजर है। खासकर जब से केंद्र के प्रमुख अधिकारियों में से एक रहे ए के शर्मा को यूपी कैबिनेट में जगह ना देने पर भी केंद्र और प्रदेश के बीच विवाद गहराता जा रहा है। इसको लेकर संघ के बड़े नेता दत्तात्रेय और BJP संगठन के बड़े नेता बीएल संतोष ने हाल ही में लखनऊ का दौरा किया। दरअसल इसके पीछे की वजह यह है कि उत्तर प्रदेश से सांसदों की संख्या संसद में सबसे ज्यादा है और केंद्र में बनने वाली सरकार इस बात को समझती है कि उत्तर प्रदेश में बिना पांव जमाए केंद्र में सरकार चलाना आसान नहीं है। लिहाजा पहले चुनाव में ही नरेंद्र मोदी ने बनारस और गुजरात की दोनों सीटें जीतने के बाद भी सिर्फ उत्तर प्रदेश की बनारस की सीट को अपनाया और गुजरात की सांसद की सीट पर से इस्तीफा दे दिया और ऐसे में अब जब 2022 का चुनाव सर पर है तो केंद्र की मोदी सरकार कोई रिस्क मोल नहीं लेना चाहती और योगी सरकार के प्रत्येक निर्णय को चुनाव से जोड़कर देख रही है। वही यूपी के पावर सेंटर यानी योगी सरकार को केंद्र की ज्यादा दखलअंदाजी उचित नहीं लग रही है और इसी वजह से मौजूदा वक्त में भी दोनों के बीच छत्तीस का आंकड़ा बनता दिखाई दे रहा है।

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