आखिर क्यों निर्जला एकादशी को कहा जाता है भीमसेनी एकादशी, पढ़े कथा

निर्जला एकादशी का व्रत ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। आप सभी को बता दें कि इस वर्ष निर्जला एकादशी व्रत 10 जून शुक्रवार को यानी आज है। जी हाँ और इसे भीमसेनी एकादशी या पांडव एकादशी भी कहते हैं।

इसी दिन निर्जला व्रत रखते हैं, और व्रत के प्रारंभ से लेकर पारण तक जल नहीं पीना होता है। आप सभी को बता दें कि इस वजह से सभी एकादशी व्रतों में इसे सबसे ​कठिन व्रत माना जाता है। जी दरअसल ज्येष्ठ माह में भीषण गर्मी के कारण अधिक प्यास लगती है, ऐसे में निर्जला एकादशी के दिन जल से भरा कलश दान करने और व्रत रखने से सभी एकादशी व्रतों का पुण्य फल निर्जला एकादशी व्रत रखने से मिल जाता है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी क्यों कहा जाता है?

निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी क्यों कहते हैं?- पौराणिक कथा के अनुसार, जब वेद व्यास जी ने पांडवों को एकादशी व्रत का संकल्प कराया, तो भीमसेन के मन में चिंता सताने लगी। उन्होंने वेद व्यास जी से पूछा कि आप तो प्रत्येक माह के हर पक्ष में एक व्रत रखने को कह रहे हैं, लेकिन वे तो एक समय भी बिना भोजन के नहीं रह सकते हैं, फिर व्रत कैसे रखेंगे? क्या उनको एकादशी व्रतों का पुण्य नहीं प्राप्त होगा? तब वेद व्यास जी ने कहा कि ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी व्रत रखने से वर्षभर के समस्त एकादशी व्रत का पुण्य फल प्राप्त होता है। यह निर्जला एकादशी व्रत है। निर्जला एकादशी व्रत करने से तुम्हें यश, पुण्य और सुख प्राप्त होगा। मृत्यु के बाद भगवान विष्णु की कृपा से मोक्ष भी प्राप्त होगा। तब भीमसेन ने निर्जला एकादशी व्रत रखा। इस वजह से निर्जला एकादशी व्रत को भीमसेनी एकादशी या पांडव एकादशी भी कहा जाता है।

Related Articles

Back to top button
T20: भारत का क्लीन स्वीप जानिये कितने खतरनाक हैं कबूतर। शतपावली: स्वस्थ रहने का एक आसान उपाय भारतीय मौसम की ALERT कलर कोडिंग In Uttar Pradesh Call in Emergency