फाल्गुन पूर्णिमा के दिन ऐसे करें मां लक्ष्मी की पूजा…

फाल्गुन माह की पूर्णिमा को ‘वसंत पूर्णिमा’ और ‘दोल पूर्णिमा’ के नाम से भी जाना जाता है। इसी दिन हिरण्यकशिपु की बहन होलिका ने प्रह्लाद को मारने के लिए अग्नि में प्रवेश किया था। होलिका को वरदान था कि उसे अग्नि जला नहीं सकती। लेकिन नारायण भक्त प्रह्लाद तो बच गए और होलिका उस अग्नि में जल गई। नारद पुराण के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा की रात्रि को लकड़ी व उपलों को एकत्रित करके जलाना चाहिए। इससे जीवन में आसुरि शक्तियां दूर रहती हैं। पूर्णिमा तिथि को शुक्ल पक्ष का अंत होता है। इस तिथि के स्वामी चंद्र देव हैं।

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार होली की शुरुआत का माध्यम कामदेव की पत्नी रति थीं। शिव के क्रोध में भस्म हुए अपने पति कामदेव को पुनर्जीवित देखने के लिए रति ने शिव की अराधना की। इससे प्रसन्न होकर शिव ने कामदेव को अनंग रूप देते हुए दोबारा जीवित कर दिया और यह वरदान दिया कि द्वापर युग में कामदेव श्रीकृष्ण के पुत्र ‘प्रद्युम्न’ के रूप में जन्म लेंगे। जिस दिन रति को यह वरदान मिला, उस दिन फाल्गुन पूर्णिमा थी। रति ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए चंदन का टीका लगाया और भगवान शिव, विष्णु सहित सभी देवी-देवताओं ने नृत्य-संगीत की सभा की।

इसके साथ ही यह मां लक्ष्मी के प्रकट होने का भी दिन है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, राक्षसों और देवताओं द्वारा किए गए समुद्र मंथन से मां लक्ष्मी फाल्गुन पूर्णिमा के दिन ही प्रकट हुई थीं। यह पूर्णिमा दक्षिण भारत में विशेष रूप से मनाई जाती है। यह दिन मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए बहुत विशेष माना जाता है। इस दिन देवी ‘लक्ष्मी’ और ‘श्री सूक्तम’ के 1008 नामों का पाठ किया जाता है।

पूर्णिमा तिथि को सत्यनारायण भगवान की व्रत-पूजा किए जाने का विधान है। प्रत्येक माह की पूर्णिमा तिथि को लोग अपने सामर्थ्य अनुसार व्रत रखते हैं। अगर व्रत करने का सामर्थ्य नहीं है तो भगवान सत्यनाराण की सामान्य पूजा-पाठ और कथा जरूर सुनते हैं। फाल्गुन मास में श्री कृष्ण की पूजा को भी विशेष फलदायी माना जाता है।

Related Articles

Back to top button
T20: भारत का क्लीन स्वीप जानिये कितने खतरनाक हैं कबूतर। शतपावली: स्वस्थ रहने का एक आसान उपाय भारतीय मौसम की ALERT कलर कोडिंग In Uttar Pradesh Call in Emergency