बिहार विधानसभा के भवन के सौ वर्ष पूरे होने पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द की इस यात्रा को कई रूपों में याद किया जाएगा…

बिहार विधानसभा के भवन के सौ वर्ष पूरे होने पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द (President Ramnath Kovind) की इस यात्रा को कई रूपों में याद किया जाएगा। सौ साल पहले जब इस भवन का निर्माण हुआ होगा तो किसी ने सोचा नहीं होगा कि एक दिन इसे इतना गौरवपूर्ण तरीके से याद किया जाएगा। भवन की तरह ही दुनिया में शांति का प्रतीक बोधिवृक्ष (BodhiVriksha) का पौधा एक दिन बड़ा होगा और भविष्य को अपने अतीत की दास्तान सुनाएगा। करीब 40 फीट के शताब्दी स्मृति स्तंभ का भी एक दिन अपना इतिहास होगा, जो पीढ़ी दर पीढ़ी दृश्य और श्रुति के रास्ते आगे बढ़ेगा।

बिहार केवल एक राज्‍य नहीं, इसका गौरवपूर्ण अतीत

बिहार भौगोलिक सीमा में बंधा एक राज्य मात्र नहीं है, बल्कि यह विज्ञान और शासन की भी प्रयोग भूमि रही है। वर्तमान बिहार का विधायी स्वरूप जो दिख रहा है, उसे बनाने-संवारने और बढ़ाने में कई विभूतियों का योगदान है। मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) से पहले कर्पूरी ठाकुर (Karpoori Thakur) और श्रीकृष्ण सिंह (Srikrishna Singh) के प्रयास तो है हीं, इसके भी पहले का गौरवपूर्ण अतीत है।

चार अध्यायों में पूरी हुई है बिहार की विधायी यात्रा

बिहार को राज्य की शक्ल में आने और इसकी विधायी यात्रा की दास्तान चार अध्यायों में पूरी हुई है। शुरुआत सच्चिदानंद सिन्हा ने की थी। उसके बाद काफिला बढ़ता गया था। पहले अध्याय में 1911 में बंगाल से अलग करके बिहार-उड़ीसा को राज्य बनाया गया था। अगले ही वर्ष इस नवोदित राज्य को लेफ्टिनेंट गवर्नर के राज्य का दर्जा प्राप्त हो गया। पटना को मुख्यालय बनाया गया। 1913 में विधान परिषद की पहली बैठक हुई थी।

दूसरा दौर 1919 में तब शुरू हुआ, जब गवर्नमेंट आफ इंडिया एक्ट अस्तित्व में आया। हालांकि प्रभावी होने में दो वर्ष लग गए। इसके तहत बिहार-उड़ीसा को पूर्ण राज्य का दर्जा देकर प्रांतीय विधायी परिषद में निर्वाचित सदस्यों की संख्या बढ़ाई गई। विधानसभा के मौजूदा भवन का निर्माण इसी वर्ष हुआ। निर्वाचित प्रतिनिधियों की पहली बैठक सात फरवरी 1921 को हुई थी। तीसरे अध्याय में 1935 से आगे की बात है। इसी दौरान गवर्नमेंट आफ इंडिया एक्ट के जरिए बिहार को उड़ीसा से अलग करके राज्य का दर्जा दिया गया। दो सदनों की विधायिका बनी। आजादी के पहले इसी एक्ट के तहत दो बार चुनाव हुए। श्रीबाबू बिहार के प्रधानमंत्री बनाए गए और गणतंत्र के बाद मुख्यमंत्री भी चुने गए। चौथा दौर तरक्की को समर्पित प्रयासों का है, जिसपर बिहार आगे बढऩे को बेताब है। नई पहचान बनाने का है, जिसका संकेत राष्ट्रपति ने भी किया है।

इस धरती पर ही पनपा दुनिया का पहला लोकतंत्र

बिहार की मिट्टी में ही गणतंत्र है। समतामूलक आचरण है। ढाई हजार वर्ष पहले एक गरीब महिला मूरा के पुत्र चंद्रगुप्त मौर्य से लेकर सम्राट अशोक और ईमानदारी के प्रतीक कर्पूरी ठाकुर के मुख्यमंत्री बनने तक का सिलसिला इसी आधार पर आगे बढ़ा। इसके पहले भी दुनिया का पहला लोकतंत्र इस धरती पर ही पनपा। उसी आधार पर विभिन्न गणराज्यों ने शासन के नियम निर्धारित किए थे। यहीं पर भगवान बुद्ध ने विश्व को करुणा की शिक्षा दी थी, जिसे याद करके राष्ट्रपति भी गर्व का अनुभव करते हैं। भीमराव आंबेडकर ने भी संविधान सभा में स्वीकार किया था कि बौद्ध संघों के अनेक नियम आज भी संसदीय प्रणाली में उसी रूप में मौजूद हैं।

अब आगे के सफर को यादगार बनाएगा बोधिवृक्ष

बोधिवृक्ष के पौधे में 21 पत्ते : विधानसभा परिसर में राष्ट्रपति ने गया से खास तौर पर मंगवाए गए बोधिवृक्ष के जिस पौधे को लगाया और पानी दिया, वह भी एक दिन विधानसभा के आगे के सफर को यादगार बनाएगा। पौधे में छोटी-बड़ी कुल 21 पत्तियां हैं, जो 21वीं सदी के वर्ष 2021 का प्रतीक हैं। विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा के मुताबिक इसमें एक दिन हजारों-लाखों पत्तियां होंगी, जिसके रेशे-रेशे में बिहार की अनगिनत कहानियां होंगी।

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