दिल्ली में विजयादशमी पर दूर्गा पूजा की धूम, महिलाओं ने मनाया सिंदूर उत्सव
राजधानी में मंगलवार को मां दुर्गा की मूर्ति का विभिन्न स्थानों पर बनाए कृत्रिम तालाबों में विसर्जन किया जाएगा। लेकिन उससे पहले दिल्ली के सीआर पार्क में महिलाओं ने सिंदूर खेला उत्सव मनाया। सीआर पार्क ही नहीं दिल्ली की अन्य जगहों पर भी उत्सव मना।
राजधानी में मंगलवार को मां दुर्गा की मूर्ति का विभिन्न स्थानों पर बनाए कृत्रिम तालाबों में विसर्जन किया जाएगा। लेकिन उससे पहले दिल्ली के सीआर पार्क में महिलाओं ने सिंदूर खेला उत्सव मनाया। सीआर पार्क ही नहीं दिल्ली की अन्य जगहों पर भी उत्सव मना। दिल्ली के आरामबाग में दुर्गा पूजा के अंतिम दिन मंगलवार को महिलाएं सिंदूर खेला खेलती नजर आईं। जानकारी के लिए बता दें कि कई पूजा समितियों ने अपने पंडालों में कृत्रिम तालाब बनाए हैं। सीआर पार्क पूजा समिति के अध्यक्ष तमिल रक्षित ने बताया कि सिंदूर खेला के बाद मां का विसर्जन होगा। पंडाल में कृत्रिम तालाब तैयार किया गया है।
उधर, सोमवार को सीआर पार्क, मिंटो रोड, आरामबाग, करोल बाग, कश्मीरी गेट और दिलशाद गार्डन समेत कई जगहों के पूजा पंडालों में भारी भीड़ दिखी। पंडालों में बंगाल के संगीतकार व कलाकारों ने अपनी कला से रू-ब-रू कराया। इसके अलावा धुनुची नृत्य, गायन, खेल आदि प्रतियोगिता हुई। बच्चों के लिए भी म्यूजिकल चेयर और गुब्बारे फोड़ने की प्रतियोगिता कराई गई।
ऐसे मनाया जाता है सिंदूर खेला
नवरात्रि के दसवें दिन महाआरती के साथ इस दिन का आरम्भ होता है। आरती के बाद भक्तगण मां देवी को कोचुर, शाक, इलिश, पंता भात आदि का भोग लगाते हैं। इसके बाद मां दुर्गा के सामने एक शीशा रखा जाता है जिसमें माता के चरणों के दर्शन होते हैं। ऐसा मानते हैं कि इससे घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। फिर सिंदूर खेला शुरू होता है। जिसमें महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाकर और धुनुची नृत्य कर माता की विदाई का जश्न मनाती हैं। सिन्दूर खेला के बाद ही अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को ही मां दुर्गा का विसर्जन भी किया जाता है।
जानें सिंदूर खेला का क्या है इतिहास
जानकारी के अनुसार सिंदूर खेला के इस रस्म की परंपरा 450 साल से अधिक पुरानी है। बंगाल से इसकी शुरुआत हुई थी और अब काशी समेत देश के अलग-अलग जगहों पर इसकी खासी रंगत देखने को मिलती है। मान्यताओं के अनुसार,मां दुर्गा 10 दिन के लिए अपने मायके आती हैं,जिसे दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है और जब वह वापस जाती हैं तो उनके विदाई में उनके सम्मान में सिंदूर खेला की रस्म की जाती है।