अवैध कटान व निर्माण के प्रकरण में आला अधिकारी आमने-सामने, जानें पूरा मामला

देहरादून, वन विभाग में इन दिनों अजीबोगरीब स्थित पैदा हो गई है। कार्बेट टाइगर रिजर्व के अंतर्गत कालागढ़ टाइगर रिजर्व वन प्रभाग में अवैध कटान व निर्माण के प्रकरण में आला अधिकारी आमने-सामने हैं। एक-दूसरे को चुनौती देते दिख रहे हैं। मसला यह कि जांच कराने का अधिकार किसे है और किसे नहीं। इसको लेकर अधिकारों की लड़ाई भी सतह पर आ गई है। विभागीय मंत्री के सुर भी कमोबेश ऐसे ही सुनाई पड़ रहे हैं। नतीजतन जांच की दिशा तय नहीं हो पा रही है। विभाग में चल रही यह खींचतान कई सवालों को जन्म दे रही है। यह स्थिति तब है जब मामला अदालत में विचाराधीन है। एनटीसीए भी प्रकरण की जांच कर कार्रवाई के निर्देश दे चुका है।

यह है मामला

कालागढ़ टाइगर रिजर्व के बफर जोन पाखरो में वन विभाग 106 हेक्टेयर क्षेत्र में टाइगर सफारी का निर्माण करा रहा है। इसके तहत वहां दो टाइगर बाड़े, म्यूजियम, जलाशय का निर्माण समेत अन्य कार्य चल रहे हैं। पूर्व में बात सामने आई कि टाइगर सफारी के लिए स्वीकृत से अधिक पेड़ काटे गए हैं। इसी बीच पाखरो वन विश्राम गृह से लेकर कालागढ़ वन विश्राम गृह तक अवैध निर्माण की बात सामने आई। मामला दिल्ली उच्च न्यायालय में गया तो राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की टीम ने मौका मुआयना किया। एनटीसीए की जांच रिपोर्ट में अवैध कटान, बगैर वित्तीय व प्रशासनिक स्वीकृति के निर्माण, कागजों में हेरा-फेरी की पुष्टि हुई। एनटीसीए ने प्रकरण में दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।

यहां फंसा है पेच

अवैध कटान व निर्माण से जुड़े इस मामले में संबंधित अधिकारियों पर दोष का निर्धारण किया जाना है। इसके लिए जांच कराई जानी है। इस कड़ी में वन विभाग के मुखिया प्रमुख मुख्य वन संरक्षक राजीव भरतरी ने प्रकरण की जांच मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी को सौंप दी। उन्हें दो सप्ताह के भीतर जांच कर दोषी अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई की संस्तुति देने को कहा गया है।

वहीं मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जेएस सुहाग ने इसे उनके अधिकार क्षेत्र का मामला बताया और कहा कि प्रकरण की जांच वह अपर प्रमुख मुख्य वन संरक्षक बीके गांगटे को पहले ही सौंप चुके हैं। हालांकि, गांगटे का कहना है कि उन्हें इस बारे में कोई आदेश नहीं मिला है। वन मंत्री डा हरक सिंह रावत ने कहा कि यह प्रकरण वन्यजीव परिक्षेत्र का है और जांच कराने का अधिकार मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक को ही है, विभाग के मुखिया को नहीं। दूसरी तरफ अपर मुख्य सचिव वन आनंद बद्र्धन प्रकरण में दो-दो जांच की जानकारी होने से अनभिज्ञता जता रहे हैं। साथ ही कहते हैं कि जो सही होगा, उसी से जांच कराई जाएगी।

सोमवार तक हटाए जा सकते हैं कई अधिकारी

कार्बेट टाइगर रिजर्व में अवैध कटान व निर्माण का प्रकरण संज्ञान में आने के बाद एनटीसीए ने अपनी जांच रिपोर्ट में प्रकरण की विजिलेंस जांच कराने पर भी जोर दिया है। मामले की गंभीरता को देखते हुए हाल में ही कालागढ़ टाइगर रिजर्व वन प्रभाग के डीएफओ, कार्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक, मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक को हटाने संबंधी फाइल तैयार की गई। बाद में इसमें विभाग प्रमुख का नाम भी शामिल कर लिया गया। सूत्रों के मुताबिक उच्च स्तर से अनुमोदन मिल चुका है, लेकिन अभी इस पर कार्रवाई नहीं हुई है। अपर मुख्य सचिव वन आनंद बर्द्धन ने बताया कि इस प्रकरण में प्रक्रिया चल रही है। सोमवार तक कोई निर्णय होने की संभावना है।

प्रमुख मुख्य वन संरक्षक राजीव भरतरी का कहना है कि अवैध कटान व निर्माण से जुड़े इस प्रकरण में शासन ने उन्हें जांच कराने के निर्देश दिए थे। इसी कड़ी में मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी को जांच अधिकारी नामित किया गया है। उन्हें इस प्रकरण के साथ ही लैंसडौन वन प्रभाग के अंतर्गत सनेह वन विश्राम भवन परिसर में हुए निर्माण कार्यों की जांच को भी कहा गया है।

राजीव भरतरी, प्रमुख मुख्य वन संरक्षक

मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जेएस सुहाग ने कहा, एनटीसीए ने मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक को जांच कराने को कहा है। इसे देखते हुए अपर प्रमुख मुख्य वन संरक्षक बीके गांगटे को जांच सौंपी गई है। उन्हें सप्ताहभर के भीतर रिपोर्ट देने को कहा गया है।

वन मंत्री डा हरक सिंह रावत का कहना है कि एनटीसीए की रिपोर्ट से ऐसा लग रहा है, मानो यह किसी एनजीओ की रिपोर्ट हो। राज्य सरकार इस पर स्टैंड लेगी। जहां तक मामले की जांच का सवाल है तो यह क्षेत्र वन्यजीव परिक्षेत्र के अंतर्गत है। इसकी जांच कराने का अधिकार मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक को ही है। यदि विभाग प्रमुख को जांच करानी थी तो उन्हें मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक से सलाह लेनी चाहिए थी।

मोरघट्टी में ध्वस्त किए अवैध निर्माण

कालागढ़ टाइगर रिजर्व वन प्रभाग के अंतर्गत मोरघट्टी में जिस भवन का निर्माण कराया जा रहा था, उसे विभाग ने ध्वस्त कर दिया है। बताते हैं कि इसके लिए वित्तीय व प्रशासनिक स्वीकृति तक नहीं ली गई थी। बजट की प्रत्याशा में यह निर्माण कराया जा रहा था।

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