जानिये क्यों है अगहन माह में केले के पेड़ को अर्घ्य देने तक मौन व्रत रखने का विधान

भगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने अनुज अर्जुन को गीता ज्ञान देता हुए कहा है कि मैं महीनों में मार्गशीर्ष हूं। अतः मार्गशीर्ष यानी अगहन माह का विशेष महत्व है। इस महीने में शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है। इस महीने में भगवान विष्णु की पूजा उपासना की जाती है। धर्मिक मान्यता है कि भगवान श्रीहरि विष्णु को केला अति प्रिय है। इसलिए उनका निवास स्थान केले के पेड़ में होता है। अतः गुरुवार के दिन केले के पेड़ की पूजा की जाती है। इस दिन पीले रंग वस्त्र धारण करना अति शुभ होता है। जबकि पीले रंग के फल और फूलों से भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा उपासना की जाती है। इस दिन केले के पेड़ को अर्घ्य देने तक मौन व्रत रखना का भी विधान है। आइए जानते हैं-

पूजा विधि

अगहन महीने में प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें और घर की साफ-सफाई करें। इसके बाद गंगाजल युक्त पानी से स्नान ध्यान कर पीले रंग का वस्त्र (कपड़े) पहनें। अब यथाशीघ्र ( मौन रह) भगवान भास्कर और केले के पेड़ को जल का अर्घ्य दें। इसके बाद केले के पेड़ की पूजा गुड़, चने की दाल, केले, पीले चंदन और फूल से करें। साथ ही निम्न मंत्रों का जाप करें।

ॐ नारायणाय विद्महे।

वासुदेवाय धीमहि।

तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।

2.

ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।

ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।

3.

कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।

प्रणतक्लेशनाशय गोविंदाय नमो नम।।

4.

ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने॥

प्रणत: क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नम:॥

5.

‘हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण-कृष्ण हरे हरे।

हरे राम हरे राम, राम-राम हरे हरे।’

अंत में भगवान श्रीहरि विष्णु जी की आरती कर मनचाहे वर की कामना नारायण हरि विष्णु से करें। अगले दिन नित्य दिनों की तरह पूजा पाठ सम्पन्न करें। एक चीज का ध्यान रखें कि गुरुवार को तेल और साबुन का उपयोग न करें। इससे गुरु कमजोर होता है।

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