उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान में महर्षि वाल्मीकि जयन्ती पर भव्य आयोजन: अखंड रामायण पाठ और कवि सम्मेलन का सफल समापन

लखनऊ: उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थानम्, लखनऊ में आज महर्षि वाल्मीकि जयन्ती के पावन अवसर पर एक भव्य समारोह का आयोजन किया गया, जिसमें वाल्मीकि रामायण का अखंड पाठ और संस्कृत कवि सम्मेलन मुख्य आकर्षण रहे। यह कार्यक्रम महर्षि वाल्मीकि जी की स्मृति में आयोजित किया गया, जिन्होंने संस्कृत साहित्य को पहला महाकाव्य “रामायण” प्रदान किया और आदिकवि के रूप में जाने गए। कार्यक्रम में देशभर से आए संस्कृत विद्वानों और कवियों ने हिस्सा लिया और अपनी विद्वता और रचनात्मकता का परिचय दिया।
अखंड रामायण पाठ का समापन
संस्थान में वाल्मीकि रामायण के अखंड पाठ का आयोजन किया गया, जिसका नेतृत्व श्री चंडी संस्कृत माध्यमिक विद्यालय, हापुड़ से आए संस्कृत के विद्वानों—राज मिश्रा, तरुण मिश्रा, गोपाल मिश्रा, ध्रुव शर्मा, कौशल शर्मा और पुष्पेन्द्र शर्मा ने किया। रामायण पाठ का समापन आज संपन्न हुआ, जिसमें दर्शकों और विद्वानों ने भाग लिया।
संस्थान के निदेशक श्री विनय श्रीवास्तव ने इस अवसर पर अतिथियों और प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कहा, “महर्षि वाल्मीकि को आदिकवि कहा जाता है क्योंकि उन्होंने प्रथम संस्कृत महाकाव्य ‘रामायण’ की रचना की। संस्कृत साहित्य में उनका योगदान अतुलनीय है और उनकी स्मृति में यह आयोजन हमारी संस्कृत धरोहर के प्रति आदर प्रकट करने का एक माध्यम है।”

विद्वत संगोष्ठी: “वाल्मीकि रामायण और विश्वबंधुत्व”
कार्यक्रम के अगले सत्र में अपराह्न 2:00 बजे से “वाल्मीकि रामायण विश्वबन्धुत्वम्” विषय पर एक विद्वत संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में प्रोफेसर भारत भूषण त्रिपाठी, डॉ. नीरज तिवारी, और डॉ. रूद्रनारायण नरसिंह मिश्र ने भाग लिया। विद्वानों ने महर्षि वाल्मीकि की विश्वबंधुत्व की भावना पर प्रकाश डाला और बताया कि रामायण केवल एक महाकाव्य नहीं, बल्कि विश्व के कल्याण और सद्भावना का प्रेरणास्रोत है। महर्षि वाल्मीकि ने सत्य, प्रेम और सौहार्द की अद्भुत शिक्षा दी, जो आज भी पारिवारिक, सामाजिक, और राष्ट्रीय स्तर पर प्रासंगिक है।
कवि सम्मेलन: संस्कृत साहित्य की उत्कृष्ट रचनाओं का मंचन
सायं 4:00 बजे से कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता पद्मश्री प्रोफेसर अभिराज राजेन्द्र मिश्र ने की। सम्मेलन में संस्कृत के प्रमुख कवियों ने अपनी काव्य रचनाओं का वाचन किया। प्रोफेसर मिश्र ने अपनी रचना “राम विषयक सरस पदावली” प्रस्तुत कर श्रोताओं का मन मोह लिया। सम्मेलन का संचालन डॉ. अरविंद कुमार तिवारी ने किया। अन्य कवियों में डॉ. गायत्री प्रसाद पांडेय, डॉ. सिंहासन पांडेय, डॉ. राजेन्द्र त्रिपाठी ‘रसराज’, डॉ. शशिकांत तिवारी, डॉ. प्रियंका आर्या, और डॉ. पंकज कुमार झा शामिल थे, जिन्होंने अपनी सुमधुर रचनाओं से समां बांधा।
डॉ. गायत्री प्रसाद पांडेय ने अपनी प्रौढ़ कविता से सभी कवियों को मार्गदर्शन दिया। डॉ. सिंहासन पांडेय ने “प्रभुराम कजरी गीतम्” और “भारती नारी गीतम्” प्रस्तुत कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। प्रयागराज से आए डॉ. राजेन्द्र त्रिपाठी ने “जयतु संस्कृतम् संस्कृतिः भारतेस्मिन्” की रचना से सभी का मन मोह लिया।
जम्मू से आई कवयित्री डॉ. प्रियंका आर्या ने अपनी भावपूर्ण काव्य प्रस्तुति से श्रोताओं को प्रभावित किया। सम्मेलन के अंत में राजस्थान से पधारे डॉ. पंकज कुमार झा ने “वाल्मीकिर्विजयते” शीर्षक से रचित रचना प्रस्तुत की, जिससे पूरे सभागार में तालियों की गूंज सुनाई दी।
वाल्मीकि की शिक्षाओं का वैश्विक संदेश
इस भव्य कार्यक्रम ने महर्षि वाल्मीकि की सार्वकालिक और सार्वभौमिक शिक्षाओं को नए सिरे से समझने का अवसर प्रदान किया। वाल्मीकि रामायण के माध्यम से उन्होंने जो विश्वबंधुत्व का संदेश दिया था, वह आज भी पूरी दुनिया के लिए प्रेरक है।
उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान द्वारा यह आयोजन संस्कृत साहित्य और संस्कृति के प्रति एक नई जागरूकता उत्पन्न करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास साबित हुआ है।