यूक्रेन और रूस की टेंशन ने आज फिर भारतीय शेयर बाजार में मचाया कोहराम, निफ्टी में भी बड़ी गिरावट
Stock Market Crash: यूक्रेन और रूस (Ukraine Russia) की टेंशन ने आज फिर भारतीय शेयर बाजार (Share Market) में कोहराम मचा दिया. यूक्रेन-रूस के कारण पैदा हुए संकट (Ukraine Russia Crisis) ने ग्लोबल मार्केट को नुकसान पहुंचाया है जिसका साफ असर भारतीय बाजार पर भी दिखाई दे रहा है. युद्ध की बनी स्थिति के चलते मंगलवार को लगातार पांचवें दिन बाजार (Share Market) में गिरावट बनी हुई है. आलम यह है कि बाजार के खुलते ही सेंसेक्स 1000 अंकों तक गिर गया और निफ्टी में 250 से ज्यादा की गिरावट दिख रही है. यूक्रेन को लेकर जारी संकट (Ukraine Crisis) से बाजार को फिलहाल राहत मिलने की कोई उम्मीद नहीं दिख रही है.
17 हजार अंक से भी नीचे आया निफ्टी
बीएसई सेंसेक्स और एनएसई निफ्टी (NSE Nifty) दोनों प्री-ओपन सेशन से ही हालात सही नहीं दिख रहे थे. कुछ मिनटों के कारोबार में भारी उथल-पुथल का इशारा मिल रहा था. एक समय इसने करीब 150 अंक की रिकवरी कर ली, लेकिन सुबह के 09:20 बजे तक फिर से सेंसेक्स करीब 990 अंक गिर चुका था और 56,700 अंक से नीचे ट्रेड कर रहा था. इसी तरह निफ्टी 300 अंक से ज्यादा टूटकर 17 हजार अंक से भी नीच आ चुका था. यानी यूक्रेन और रूस के बीच जंग की स्थिति देखते हुए इन्वेस्टर्स भी डरे हुए हैं. ऐसे में आगे भी शेयर बाजार की हालत आर खराब हो सकती है.
युद्ध की आशंका से सहमे इन्वेस्टर्स
दरअसल, युद्ध की आशंका के चलते दुनिया भर के इन्वेस्टर्स सहमे हुए हैं और सुरक्षित निवेश में ही रुचि ले रहे हैं. इस कारण दुनिया भर के बाजारों में भारी बिकवाली देखी जा रही है. इसका असर मंगलवार को भी घरेलू बाजार में देखने को मिला. बाजार के खुलते ही सेंसेक्स 1000 अंकों तक गिर गया और निफ्टी में 250 से ज्यादा की गिरावट दिख रही है.
पिछले हफ्ते भी हुआ था नुकसान
लगातार पांचवे दिन भी शेयर बाजार की स्थिति ठीक नहीं रही. जबकि इससे पहले पिछला सप्ताह भी घरेलू बाजार के लिए बुरा साबित हुआ था. बजट के चलते बाजार में आई तेजी पूरी तरह से गायब हो चुकी है. पिछले सप्ताह बाजार अमेरिका में ब्याज दर जल्दी बढ़ाये जाने की चिंता से परेशान था. यह तनाव घटा नहीं था कि यूक्रेन संकट ने बाजार की हालत और बिगाड़ दी. यूक्रेन संकट के चलते कच्चा तेल 7 साल के उच्च स्तर पर जा चुका है. आशंका है कि क्रूड ऑयल 100 डॉलर प्रति बैरल के स्तर को पार कर सकता है. यदि ऐसा हुआ तो यह वैश्विक अर्थव्यवस्था की ग्रोथ पर भारी साबित होगा.