सुप्रीम कोर्ट: सशस्त्र बल को कुशल बनाए रखने के लिए अवांछनीय तत्वों को बाहर करना जरूरी
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सशस्त्र बल को कुशल बनाए रखने के लिए अवांछनीय तत्वों को बाहर निकालना आवश्यक है। शीर्ष अदालत ने सहकर्मी पर हमला करने वाले सीआरपीएफ कर्मी की अनिवार्य सेवानिवृत्ति को बरकरार रखा। अदालत ने कहा कि अनिवार्य सेवानिवृत्ति किसी कर्मचारी की सेवा समाप्त करने का दूसरा रूप है और यह सेवानिवृत्ति, लाभों के लिए उसकी पात्रता को प्रभावित किए बगैर, कैडर से बेकार चीजों को हटाने का एक अच्छी तरह से स्वीकृत तरीका है।
सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा, आमतौर पर अनिवार्य सेवानिवृत्ति को सजा नहीं माना जाता है, लेकिन अगर सेवा नियम इसकी अनुमति देता है तो इसे सजा के तौर पर दिया जा सकता है। पीठ ने केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल अधिनियम के तहत नियम 27 में निर्धारित अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सजा की वैधता को बरकरार रखा। पीठ ने कहा, बल (सीआरपीएफ) को कुशल बनाए रखने के लिए, उसमें से अवांछनीय तत्वों को बाहर निकालना आवश्यक है। यह बल पर नियंत्रण का एक पहलू है, जो केंद्र सरकार के पास सीआरपीएफ अधिनियम की धारा 8 के आधार पर है। इसलिए बल पर प्रभावी नियंत्रण सुनिश्चित करने के सामान्य नियम बनाने की शक्ति का प्रयोग करते हुए अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सजा निर्धारित करने को सीआरपीएफ अधिनियम की धारा 11 के तहत गलत नहीं ठहराया जा सकता है।
केंद्र को अधिनियम के उद्देश्य पूरा करने का अधिकार
पीठ ने कहा कि केंद्र सरकार को न सिर्फ सीएफपीआर अधिनियम की धारा 11 के तहत छोटी सजा को विनियमित करने के लिए नियम बनाने का शक्ति है, बल्कि अधिनियम के उद्देश्यों को पूरा करने का भी अधिकार है, जिसमें बल पर नियंत्रण के साथ-साथ उसका प्रशासन भी शामिल है। पीठ ने कहा, सीआरपीएफ अधिनियम को लागू करते समय विधायी इरादा यह घोषित करना नहीं था कि सिर्फ वही छोटी सजाएं दी जा सकती हैं जो सीआरपीएफ अधिनियम की धारा 11 में निर्दिष्ट हैं, बल्कि इसे केंद्र सरकार के लिए खुला छोड़ दिया गया था कि वह अधिनियम के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए नियम बनाए और सजा तय करे। शीर्ष अदालत ने कहा कि उसे तिवारी को दी गई सजा में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं मिला।
यह है मामला
शीर्ष अदालत ने 2005 में अपने सहकर्मी से मारपीट के मामले में हेड कांस्टेबल संतोष कुमार तिवारी को दी गई अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सजा के खिलाफ उड़ीसा हाईकोर्ट की एकल और खंडपीठ के फैसले को चुनौती देने वाली केंद्र सरकार की अपील को स्वीकार कर लिया। तिवारी ने तर्क दिया कि ऐसी सजा, जिस पर कानून के तहत विचार नहीं किया गया है, किसी नियम के माध्यम से नहीं दी जा सकती।