जानें रूस ने G-7 देशों के किस प्रस्ताव को किया रिजेक्ट, पढ़े पूरी ख़बर

रूस ने जी-7 और ऑस्ट्रेलिया के उस प्रस्ताव को रिजेक्ट कर दिया है जिसमें कच्चे तेल का भाव 60 डॉलर प्रति बैरल तय किया गया था। रूस की न्यूज एजेंसी TASS के अनुसार प्रवक्ता डिमिट्रा पेशकोव ने बताया, “हम परिस्थितियों का मूल्याकंन कर रहे हैं। इस तरह के मार्केट कैप के लिए हमने कुछ तैयारियां कर रखी है। हमें यह प्रस्ताव स्वीकार्य नहीं है।” बता दें, यूक्रेन युद्ध की वजह से इस समय रूस कई प्रतिबंधों को झेल रहा है। 

क्या है पूरा मामला 

जी-7 में शामिल अमीर देश रूस से आने वाले तेल की कीमतों पर यह सीमा तय कर रहे थे और उनका उद्देश्य दुनिया को रूस से आने वाले तेल की निर्बाध आपूर्ति जारी रखना है अन्यथा दुनियाभर में ऊर्जा की कीमतें आसमान छूने लगेंगी और महंगाई फिर और बढ़ जाएगी। जिस खासकर यूरोप की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा। 

बता दें कि नए साल के मौके पर यूरोप के कई देशों में एनर्जी की मांग काफी बढ़ जाती है। पहले ही मंहगाई से जूझ रही यूरोप की अर्थव्यवस्था को रूस के इस फैसले से जोर का झटका लग सकता है। अगर आने वाले कुछ दिनों में एनर्जी की कीमतों को यूरोपिय देश कम करने में असफल रहे तो महंगाई की वजह से नए साल का जश्न फीका पड़ सकता है। 

क्या है अमेरिका का रूख

अमेरिका की वित्त मंत्री जेनेट येलेन ने एक बयान में कहा कि पुतिन के लिए जो राजस्व का प्राथमिक स्रोत है, इस समझौते से उस पर पाबंदी लग सकेगी तथा वैश्विक ऊर्जा आपूर्तियों में भी स्थिरता आएगी। जी-7 गठबंधन के एक संयुक्त वक्तव्य में शुक्रवार को कहा गया कि समूह अधिकतम मूल्य की उचित तरीके से समीक्षा करने और इसमें परिवर्तन करने के लिए तैयार है। रूस के कच्चे तेल के दाम हाल में 60 डॉलर प्रति बैरल से नीचे चले गए थे। अब यूरोपीय संघ के इसकी सीमा 60 डॉलर प्रति बैरल तय करने पर यह मौजूदा दाम के आसपास ही होगी। यह अंतरराष्ट्रीय तेल मानक ब्रेंट क्रूड के मुकाबले काफी सस्ता है जो शुक्रवार को 85.48 डॉलर प्रति बैरल था।

अमेरिका ने रूसी तेल पर 60 डॉलर प्रति बैरल की मूल्य सीमा लगाने के कदम का स्वागत करते हुए कहा है कि यह एक महत्वपूर्ण उपाय है जिससे उभरते बाजारों और कम आय वाली अर्थव्यवस्था को लाभ पहुंचेगा और यूक्रेन में ”बर्बर युद्ध” करने के लिए राष्ट्रपति व्लादिमी पुतिन के लिए आवश्यक धन पर भी रोक लग पाएगी। जी-7 और ऑस्ट्रेलिया द्वारा यूरोपीय संघ के इस निर्णय का साथ देने के बाद, येलेन ने कहा, ”इस मूल्य सीमा का लाभ विशेषकर कम और मध्यम आय वाले देशों को मिलेगा जो पुतिन के युद्ध के कारण ऊर्जा तथा खाद्य कीमतों की आसमान छूती कीमतों से परेशान हैं।”

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