योगी के बुलडोजर से असहज शिखंडियों का उनके नजदीकियों पर निशाना
देश भर में बुलडोजर बाबा के रूप में योगी आदित्यनाथ के बढ़ते प्रभाव एवं लोकप्रियता से एक बड़ा वर्ग घबराहट में है. यह ऐसे लोगों का वर्ग है, जो सभी दलों की सत्ता में मलाई खाता रहा है. इस सरकार में उनकी दाल गल रही है, लेकिन पूरी तरह नहीं गल पा रही है, जिससे यह लोग परेशान हैं और नाराज भी. इस वर्ग में अधिकारी भी हैं, सफेदपोश पत्रकार भी हैं, नेता भी हैं और दलाल भी. ऐन चुनाव से पहले यह वर्ग योगी आदित्यनाथ की छवि को धूमिल करने के लिये उनके विश्वसनीय अधिकारियों, सहयोगियों के खिलाफ तथ्यहीन एवं अनर्गल आरोप लगाकर नुकसान पहुंचाने का हर संभव साजिश रचता है.
इसमें उनके विश्वसनीय लोगों के खिलाफ बिना तथ्य के मानहानिकारक खबरों का प्रकाशन भी शामिल है, जो छपता कहीं नहीं है, लेकिन उसका पीडीएफ और जेपीजी बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल किया जाता है ताकि मुख्यमंत्री की ईमानदार छवि को धक्का पहुंचे और ज्यादा से ज्यादा लोग इस आधारहीन तथ्य को सही मानकर योगी आदित्यनाथ के खिलाफ अपनी राय तैयार करें. गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव 2022 के दौरान भी मुख्यमंत्री की छवि खराब करने के लिये उनके नजदीकी अधिकारियों एवं सहयोगियों के खिलाफ सुनियोजित अभियान चलाया गया था.
हालांकि इस अभियान के योगी आदित्यनाथ की छवि पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा, लेकिन एक बार फिर लोकसभा चुनाव से पहले ऐसा ही प्रयास शुरू कर दिया गया है. खासकर सूचना विभाग को लेकर. सूचना विभाग बीते छह सालों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की छवि को चमकाने में सफल रहा है, जो किसी भी राज्य के सूचना की अहम जिम्मेदारी होती है. योगी आदित्यनाथ की छवि को चमकाने की कोशिश में सूचना निदेशक के कार्य से विभाग में लंबे समय तक जमे कई मगरमच्छ और अजगर भी प्रभावित हुए हैं. ऐसे ही मगरमच्छ और अजगर सीधी लड़ाई लड़ने की बजाय शिखंडियों का सहारा लेकर सरकार की छवि को खराब कर रहे हैं.
सूचना विभाग को बदनाम करने का यह अभियान लंबे समय से चल रहा है. मुख्यमंत्री के खिलाफ लंबे समय से जारी साजिशों के क्रम में अब उनके निर्देशन में चलने वाले विभाग को निशाना बनाया जा रहा है. सूचना में विभागीय स्तर पर कोई गड़बड़ी नहीं मिल रही है तो निजी स्तर पर हमले किये जा रहे हैं. सूचना निदेशक से लेकर सूचना के कर्मचारियों के खिलाफ अनर्गल एवं तथ्यहीन खबरों को सर्कुलेट कर यह प्रयास किया जा रहा है कि इसका असर भाजपा के चुनावी अभियान पर पड़े और नरेंद्र मोदी को उत्तर प्रदेश में नुकसान उठाना पड़े.
वरना दूसरा कोई कारण नहीं था कि यह अभियान तभी शुरू किया जाये, जब चुनाव आते हैं. अगर कुछ गलत हो रहा है तो चुनाव से पहले क्यों नहीं ऐसी खबरों का प्रकाशन किया जाता है? जाहिर है कि ऐसे लोगों की मंशा सही तथ्य को बाहर लाने की बजाय सरकार की छवि को नुकसान पहुंचाने की होती है. विधानसभा चुनाव के बाद अब लोकसभा चुनाव में भी ऐसा ही अभियान शुरू किया गया है, और अंदेशा है कि चुनावी नुकसान पहुंचाने के लिये योगी आदित्यनाथ के विश्वसनीय अधिकारियों, नेताओं एवं सहयोगी की छवि धूमिल किये जाने की घटनायें बढ़ेंगी.