सहजयोग आज का महायोग

‘सह’ अर्थात् साथ व ‘ज’ का अर्थ है जन्मा, -मनुष्य के साथ ही जन्मा योग। जन्म से ही प्रत्येक मनुष्य में एक सूक्ष्म तंत्र होता है जो जागृत होने पर सहज ही उसे योग प्रदान करता है, अर्थात् परमात्मा से स्वतः घटित होने वाली एकाकारिता। यही प्रक्रिया आत्मसाक्षात्कार कहलाती है। सभी धर्म ग्रन्थों मेें इसका वर्णन है। सहजयोग तथा अन्य धार्मिक विधियों में अन्तर केवल इतना ही है कि आत्मसाक्षात्कार हमारी आध्यात्मिक उत्क्रान्ति का आरम्भ है, दुर्लभ लक्ष्य नहीं। इस आध्यात्मिक शक्ति कुण्डलिनी की जागृति प्राप्त करने के लिए साधक में सत्य को जानने की शुद्ध इच्छा होनी चाहिए तथा किसी साक्षात्कारी व्यक्ति का उपस्थित होना भी आवश्यक है।

जागृत होकर कुण्डलिनी पावन अस्थि से उपर की ओर उठती है। सुषुम्ना (मध्य नाड़ी तंत्र) मार्ग पर छह चक्रों को भेदती हुई इन ऊर्जा केन्द्रों को प्रकाश एवं पोषण प्रदान करती है। जब कुण्डलिनी आज्ञा चक्र को पार करती है, तो साधक निर्विचार चेतना की स्थिति में चला जाता है, तथा उसे दिव्य शान्ति एवं मौन का अनुभव प्राप्त होता है। सच्ची ध्यान धारणा की यह प्रथम अवस्था है। प्रतिदिन कुछ क्षणों के लिए भी निर्विचारिता की अवस्था प्राप्त होने जाने से ही  मनुष्य के सभी शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक पक्ष बेहतर हो जाते हैं। अपने चारों ओर के संसार से हमारा सामंजस्य स्थापित हो जाता है और रोज़मर्रा के जीवन के उतार-चढ़ाव व्यक्ति को कम प्रभावित करते हैं।

तालू क्षेत्र में स्थित सहस्त्रार चक्र सहस्त्रदल कमल से गुज़रती हुई कुण्डलिनी सिर की तालू अस्थि का भेदन करती है और परम चैतन्य से इसका मिलन होता है। हाथों की हथेलियों और सिर के शिखर (तालू भाग)) पर शीतल चैतन्य लहरियों के रूप में इसकी अनुभूति करते हैं। शरीर, मन, बुद्धि एवं अहंकार आदि षडरिपुओं का प्रभाव मनुष्य पर कम हो जाता है और वह अपनी आत्मा में अपने सत्य स्वभाव को अनुभव करता है, यही आत्मसाक्षात्कार है। यह अत्यन्त सुन्दर एवं दिव्य अनुभूति है। 175 से भी अधिक देशों में सहजयोग ध्यान केन्द्रों में प्रतिदिन हज़ारों लोग आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर, चेतना की उच्च अवस्था में उन्नत हो रहें हैं। नियमित सहजयोग ध्यान धारणा के लाभ कई हैं। व्यक्ति शांत हो जाता है और उसके तनाव कम हो जाते हैं। शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। गहरी नींद आती है। पारिवारिक जीवन व अन्य सम्बन्ध प्रेममय हो जाते हैं। धूम्रपान,मद्यपान आदि दुर्गुण स्वतः दूर हो जाते हैं। सर्व सामान्य गृहस्थ जीवन बिताते हुए गहन आध्यात्मिक अवस्था का आनन्द प्राप्त होता है। आन्तरिक चेतना से हम अपना पथ प्रदर्षन कर सकते हैं।

सहजयोग पूरी तरह से वैज्ञानिक है। किसी भी आयु, वर्ग, धर्म व सम्प्रदाय का व्यक्ति इसे आसानी से कर सकता है। सहजयोग मनुष्य के आंतरिक धर्म को चलायमान व पोषित करता है, बाह्य व मानव निर्मित धर्म से इसका कोई संबंध नहीं है। सहजयोग में ध्यान व प्रवेश पूर्णतया निःशुल्क है।

Related Articles

Back to top button