बरेली के बांस-बेंत और जरदोजी को मिला जीआई टैग
देश-दुनिया में बरेली की पहचान बने जरदोजी और बांस-बेंत को जीआई (जियोग्राफिकल इंडीकेशन) टैग मिल गया है। इससे दूसरे शहरों के कारोबारी अपने उत्पाद को बरेली का बताकर बिक्री नहीं कर सकेंगे। साथ ही, कारोबार में भी वृद्धि होने की भी उम्मीद है। इससे जुड़े कारीगरों की आमदनी भी बढ़ेगी।
एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) योजना के तहत भी बांस-बेंत और जरदोजी पंजीकृत हैं। जीआई टैग के क्षेत्र में विशिष्ट कार्य के लिए पदश्री सम्मान से नवाजे गए विशेषज्ञ डॉ. रजनीकांत के मुताबिक बरेली जरदोजी क्राफ्ट के लिए फरीदपुर मोहल्ला मिरधान की एनआरआई वेलफेयर सोसायटी ने 19 जुलाई 2022 को और बरेली के बांस-बेंत फर्नीचर के लिए तिलियापुर (सीबीगंज) के मॉडर्न ग्रामोद्योग सेवा संस्थान ने 18 जुलाई 2022 को आवेदन किया था। अब ये पंजीकृत हो गए हैं। जीआई टैग की चेन्नई संस्था ने इन उत्पादों को पंजीकृत किया है।
बरेली में जरदोजी कारोबार से करीब चार लाख लोग जुड़े हैं। बांस-बेंत के फर्नीचर का कारोबार भी यहां खूब फैला हुआ है, मगर बरेलीजीएसटी की उलझन, उत्पादों की स्थिर कीमत, कई निषेध और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिल रही चुनौती से कारोबार फीका है।
क्या है जीआई टैग
जीआई टैग एक संकेतक है, जिसका उपयोग एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र के विशेष विशेषता वाले उत्पादों को पहचान मिलती है। जीआई का रजिस्ट्रेशन दस वर्ष की अवधि के लिए वैध रहता है। इसे समय-समय पर नवीनीकृत किया जा सकता है।
यह होता है महत्व
एक बार जीआई टैग का दर्जा मिलने के बाद कोई अन्य निर्माता उत्पादों के विपणन के लिए इसके नाम का दुरुपयोग नहीं कर सकता है। यह ग्राहकों को उत्पाद की प्रमाणिकता के प्रति आश्वस्त करता है। किसी उत्पाद का जीआई अन्य पंजीकृत जीआई के अनधिकृत प्रयोग को रोकता है। इससे उत्पाद की ब्रांडिंग, मार्केटिंग, निर्यात समेत कानूनी संरक्षण मिलता है।
कच्चे माल की महंगाई भी चुनौती
जरदोजी कारोबारियों के मुताबिक कुछ समय से जरी-जरदोजी के कच्चे माल जैसे रेशम, करदाना मोती, कोरा कसाब, मछली के तार, नक्शी, नग, मोती, ट्यूब, चनाला, जरकन नोरी, पत्तियां, दर्पण, सोने की चेन आदि की कीमतों में वृद्धि हुई है। इसके सापेक्ष तैयार माल की कीमतें स्थिर हैं। ऐसा ही हाल बेंत के फर्नीचर का भी है।