लखनऊ में शिवानी और अदम गोंडवी की स्मृति में आयोजित साहित्यिक संगोष्ठी

लखनऊ, 24 अक्टूबर: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा प्रसिद्ध कथाकार शिवानी गौरापंत और जनवादी कवि अदम गोंडवी की स्मृति में एक दिवसीय साहित्यिक संगोष्ठी का आयोजन हिन्दी भवन के निराला सभागार में सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर साहित्यकारों और विद्वानों ने इन महान विभूतियों के साहित्यिक योगदान को याद किया और उनके जीवन के अनछुए पहलुओं पर चर्चा की। कार्यक्रम का आयोजन साहित्यकारों और साहित्य प्रेमियों के लिए एक विशेष अवसर साबित हुआ, जहां दोनों रचनाकारों की कृतियों पर विचार व्यक्त किए गए।

शिवानी: साहित्य में समाज सेवा और संवेदनशीलता की प्रतीक

इस अवसर पर डॉ. शिवानी पाण्डेय ने प्रसिद्ध कथाकार शिवानी गौरापंत के जीवन और साहित्य पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि, “रचनाकार का व्यक्तित्व उसकी रचनाओं में परिलक्षित होता है, और शिवानी का जीवन इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है। उनका घर किसी साहित्यिक केंद्र से कम नहीं था, जहां साहित्यिक चर्चाएं और सृजन नियमित होते थे।”

डॉ. पाण्डेय ने बताया कि शिवानी का बचपन साहित्य और संस्कारों के वातावरण में बीता, जिसमें उनके माता-पिता की महत्वपूर्ण भूमिका रही। उन्होंने बचपन में ही संस्कृत भाषा का अध्ययन शुरू कर दिया था और उन्हें बांग्ला भाषा और संगीत का भी गहन ज्ञान था। शिवानी की प्रसिद्ध रचना ‘कृष्णकली’ में उनके नृत्यकला के ज्ञान का भी अद्भुत प्रदर्शन मिलता है।

शिवानी को रवींद्रनाथ टैगोर का सानिध्य प्राप्त हुआ, जिससे उनके साहित्य में समन्वयवाद और संवेदनशीलता के तत्व उभरे। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने शांति निकेतन में उन्हें हिन्दी भाषा की प्रारंभिक शिक्षा दी। बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय, अमृतलाल नागर, और धर्मवीर भारती के साहित्य ने भी शिवानी के व्यक्तित्व और लेखन को गहराई से प्रभावित किया।

अदम गोंडवी: जनवादी कवि की विद्रोही रचनाएं

संगोष्ठी में डॉ. प्रकाश चंद्र गिरि ने अदम गोंडवी के जीवन और उनकी रचनाओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “अदम गोंडवी एक मध्यमवर्गीय किसान परिवार से आते थे, लेकिन अपनी सीमित रचनाओं के बावजूद वह एक कालजयी रचनाकार बने। उनकी रचना ‘समय से मुठभेड़’ विशेष रूप से चर्चित है, जिसमें सामाजिक व्यवस्था और शासन के खिलाफ विद्रोह की भावना दिखाई देती है।”

गोंडवी की रचनाओं में उर्दू और फारसी के शब्दों का प्रयोग बहुतायत से होता था, जिससे उनकी कविताओं में गहरी प्रभावशीलता आई। उनकी गजलों में भूख, भुखमरी और सामाजिक असमानताओं जैसी ज्वलंत समस्याओं को उजागर किया गया है। अदम गोंडवी का व्यक्तित्व जितना सरल दिखता था, उनके अंदर सत्ता और सामाजिक विषमताओं के प्रति विद्रोह की भावना उतनी ही प्रबल थी।

शिवानी और अदम गोंडवी की रचनाओं का पाठ

संगोष्ठी के दौरान शोधार्थियों और विद्यार्थियों द्वारा शिवानी की कहानियों और अदम गोंडवी की गजलों का पाठ भी किया गया। श्री जितेंद्र कुमार, श्री देवेंद्र सिंह, सुश्री सौम्या मिश्रा, और श्री राहुल कुमार ने इन रचनाकारों की कृतियों को प्रस्तुत कर उनके साहित्यिक योगदान को सम्मानित किया।

कार्यक्रम का संचालन और धन्यवाद ज्ञापन

कार्यक्रम का संचालन डॉ. अमिता दुबे, प्रधान संपादक, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा किया गया। उन्होंने संगोष्ठी में उपस्थित समस्त साहित्यकारों, विद्वज्जनों और मीडिया कर्मियों का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर शिवानी और अदम गोंडवी के प्रशंसक बड़ी संख्या में उपस्थित रहे, जिससे कार्यक्रम की गरिमा और बढ़ गई।

यह साहित्यिक संगोष्ठी दोनों रचनाकारों के जीवन और कृतियों पर गहन चर्चा और विचार मंथन का अवसर साबित हुई।

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