सरकार ने किए 39125 करोड़ के पांच रक्षा करार, खरीदी जाएंगी मिसाइल

देश की सैन्यशक्ति बढ़ाने के साथ ही रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है। इसी सिलसिले में केंद्र सरकार ने एक और कदम बढ़ाते हुए ‘मेक इन इंडिया’ के तहत ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइलों, मिग-29 लड़ाकू विमानों के इंजन, रडारों समेत विभिन्न रक्षा उपकरणों की खरीद के लिए शुक्रवार को 39,125.39 करोड़ रुपये के पांच करार किए हैं।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और रक्षा सचिव गिरधर अरमाने की उपस्थिति में इन रक्षा सौदों पर हस्ताक्षर किए गए। पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ बढ़ते तनाव के बीच इन सौदों से चीन पर नकेल कसा जा सकेगा। स्वदेश में ही रक्षा उपकरणों का उत्पादन होने से विदेशी मुद्रा की भी बचत होगी। रक्षा उपकरणों के लिए विदेश पर निर्भरता कम होगी।

पांच करार में दो करार ब्रह्मोस मिसाइलों की खरीद के
पांच करार में दो करार ब्रह्मोस मिसाइलों की खरीद के लिए ब्रह्मोस एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड (बीएपीएल) के साथ किए गए हैं। ब्रह्मोस मिसाइलों को खरीदने के लिए 19,518.65 करोड़ रुपये का करार किया गया है। भारतीय नौसेना के प्रशिक्षण आवश्यकताओं के लिए इन मिसाइलों का इस्तेमाल होगा। इस परियोजना से नौ लाख कार्यदिवस में रोजगार मिलेगा।

ब्रह्मोस मिसाइलों को लद्दाख में तैनात करने की योजना
बीएपीएल के साथ किया गया दूसरा अनुबंध 988 करोड़ रुपये की लागत से -ब्रह्मोस से लैस पोत खरीदने के लिए बीएपीएल के साथ किया गया है। यह नौसेना इससे समुद्र या जमीन पर सुपरसोनिक गति से हमला कर सकती है। इस प्रोजेक्ट से सात-आठ सालों तक 60 हजार कार्यदिवस का रोजगार मिलेगा। गौरतलब है कि ब्रह्मोस मिसाइलों को लद्दाख में भी तैनात करने की योजना है।

मिग-29 के लिए एयरो इंजन की खरीद के लिए एचएएल से करार
मिग-29 लड़ाकू विमानों के लिए आरडी-33 एयरो इंजन की खरीद के सौदे पर रक्षा क्षेत्र की प्रमुख सरकारी कंपनी ¨हदुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के साथ करार किए गए। इस परियोजना की लागत 5,249.72 करोड़ रुपये होगी। रक्षा मंत्रालय ने कहा कि एयरो इंजन का उत्पादन एचएएल के कोरापुट डिवीजन में किया जाएगा। ये इंजन मिग-29 में नई जान फूंक देंगे। इनका निर्माण रूस ओईएम की ट्रांसफर आफ टेक्नोलाजी (टीओटी) लाइसेंस के जरिये होगा। भविष्य में भी इसकी मरम्मत और विस्तार में कोई दिक्कत नहीं होगी।

लार्सन एंड टूब्रो से खरीदे जाएंगे सीआईडब्ल्यूएस और रडार
लार्सन एंड टूब्रो लिमिटेड के साथ दो समझौते किये गए हैं, जिसके तहत ‘क्लोज-इन वेपन सिस्टम’ (सीआइडब्ल्यूएस) और उच्च क्षमता वाले रडार की खरीद की जाएगी। सीआइडब्ल्यूएस की खरीद पर 7,668.82 करोड़ रुपये और रडार की खरीद पर 5,700 करोड़ रुपये की लागत आएगी। क्लोज-इन हथियार प्रणाली कम दूरी की मिसाइलों और दुश्मन के विमानों का पता लगाने और उन्हें नष्ट करने के लिए रक्षा युद्ध प्रणाली है।

पांच साल तक की परियोजना
पांच साल की इस परियोजना के दौरान हर साल 2400 लोग इस काम में लगेंगे। उच्च क्षमता वाले रडार में निगरानी के अत्याधुनिक फीचर हैं। यह वायुसेना की वायु रक्षा क्षमता को बढ़ाएगा। निजी क्षेत्र के हाथों बनने वाली भारत में यह पहली रडार प्रणाली होगी। इससे प्रति वर्ष पांच साल तक औसतन एक हजार लोगों को रोजगार मिलेगा।

Related Articles

Back to top button