विधानसभा चुनाव का बिगुल बजते ही सियासी खेमेबंदी भी हुई शुरू, बनाई ये खास रणनीति

UP Vidhan Sabha Chunav 2022 विधानसभा चुनाव का बिगुल बजते ही सियासी खेमेबंदी भी शुरू हो गई है। हाथरस से जीत का रस किसको नसीब होगा, यह तो मतगणना के बाद पता लगेगा, लेकिन किला फतह करने की सभी तैयारी में जुटे हैं। सभी दलों ने प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं। इनमें कुछ धुरंधर हैं तो कुछ नए चेहरे भी। टिकट वितरण में जातिगण गणित का पूरा ध्यान रखा गया है। जिले में तीन विधानसभा क्षेत्र हैं, जिन पर किसी भी दल के लिए जीत हासिल करना आसान नहीं। दिग्गज वोटों के गणित में लगे हैं तो मतदाता मुद्दों पर बात करने की तैयारी में हैं। इसको लेकर सियासी चर्चा हर तरफ हैं। कोई नए प्रत्याशी को जिता रहा है तो कोई पुराने प्रत्याशी से हिसाब-किताब की बात कह रहा है। सभी प्रत्याशी अपनी-अपनी जीत का दंभ भर रहे हैं, लेकिन मतदाता के मन में क्या है, यह किसी को नहीं पता। 20 फरवरी को मतदान होना है। 10 मार्च को हार-जीत की घोषणा होनी है।

विधानसभा सीट हाथरस (सुरक्षित)

आजादी की जंग की चर्चा जब भी होती है तो हाथरस के राजा और किले के बिना पूरी नहीं होती। अंग्रेजों ने इसी किलो पर फतह पाने के लिए करीब दस किलोमीटर दूर से गोले दागे थे। पूरा किला ध्वस्त हो गया, पर राजा दयाराम झुके नहीं। इस किले के बीचोबीच बने भगवान दाऊजी मंदिर का भी कुछ नहीं बिगड़ा। मंदिर आज भी है, जो शहर की पहचान बनी हुई है। विधानसभा चुनाव में यहां से जीत हासिल करने के लिए सभी दल वोटों की किलेबंदी में लगे हैं। यह सीट सुरक्षित हैं। भाजपा से अंजुला माहौर प्रत्याशी हैं। इन्हें बाहरी होने के चलते विरोध झेलना पड़ रहा है। टिकट न मिलने से पार्टी के कुछ लोग रूठे हुए हैं। सपा ने ब्रज मोहन राही को प्रत्याशी हैं। वे 2017 में बसपा से प्रत्याशी थे, लेकिन चुनाव हार गए थे। हाल ही में सपा में आए हैं। बसपा से संजीव काका मैदान में हैं। वे अलीगढ़ के विजयगढ़ के हैं। उनकी पत्नी हाथरस के वार्ड नंबर आठ से जिला पंचायत सदस्य बनी थीं। कांग्रेस से सरोज देवी प्रत्याशी हैं। वे वर्तमान में सिकंदराराऊ नगर पालिका अध्यक्ष हैं। सुरक्षित सीट पर बसपा-सपा और कांग्रेस की प्रत्याशी एक ही बिरादरी से हैं, भाजपा इसका लाभ उठाने की कोशिश में हैं। वर्तमान विधायक भाजपा से है।

विधनसभा सीट सादाबाद

कभी पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरणसिंह के प्रभाव वाले इलाके सादाबाद क्षेत्र में इस बार विधानसभा चुनाव काफी रोचक होगा। जाट बहुल्य इस क्षेत्र में सभी दल जीत के लिए रणनीति बनाने में लगे हैं। यहां का चुनाव इसलिए भी खास है कि बसपा का दामन छोड़कर रामवीर उपाध्याय इस बार यहां से भाजपा प्रत्याशी हैं। 2017 के चुनाव में बसपा से विधायक बने थे। रालोद-सपा गठबंधन से प्रदीप चौधरी गुड्डू मैदान में हैं। बसपा से रामवीर के धुर विरोधी डा. अविन शर्मा हैं, जिन्होंने भाजपा को छोड़ बसपा का दामन थामा है। यहां सियासी समीकरण दिलचस्प हैं। मुकाबला त्रिकोणीय लग रहा है। भाजपा इस बार रामवीर के सहारे 21 वर्ष का जीत का सूखा खत्म करना चाहती है।

विधानसभा सीट सिकंदराराऊ

इत्र की नगरी हसायन की देशभर में अलग पहचान हैं। यह क्षेत्र सिकंदराराऊ विधानसभा क्षेत्र में शामिल है। यहां के सियासी सीमकरण दिलचस्प हैं। बसपा ने ठा. अवधेश सिंह को मैदान में उतारा है। वे क्षत्रिय समाज से हैं। भाजपा ने भी क्षत्रिय समाज से सिटिंग विधायक वीरेंद्र सिंह राणा पर भरोसा जताया। कांग्रेस ने जिलाध्यक्ष की पत्नी छवि वाष्र्णेय को प्रत्याशी बनाया। सपा में सबसे ज्यादा घमासान रहा। 20 दावेदार टिकट की दौड़ में लखनऊ तक चक्कर लगाते रहे। नामांकन की अंतिम तिथि से एक दिन पहले ही डा. ललित बघेल को टिकट दिया। सपा ने पिछड़ी जाति के नए चेहरे पर दांव खेला है। जातिगण समीकरण को देखकर यहां मुकाबला दिलचस्प माना जा रहा है। कैडर वोट के जरिए सभी दल नैया पार लगाने की तैयारी में हैं।

ताकत और कमजोरी

– भाजपा

ताकत– हर बूथ पर बूथ अध्यक्ष सहित 20 लोगों की कमेटी। एक वाट्सएप ग्रुप में जोड़ा गया है। हर बूथ पर एक पन्ना प्रमुख तैनाती।

कमजोरी– हाथरस सदर की प्रत्याशी को बाहरी बताते हुए विरोध के सुर उठ रहे हैं। टिकट कटने से नाराज लोगों को साधने की चुनौती।

सपा-रालोद गठबंधन

ताकत-जाट बैल्ट सादाबाद पर रालोद का प्रभाव रहा है। गठबंधन के बाद दोनों दलों को यादव व जाट वोटों पर भरोसा है।

कमजोरी- टिकट को लेकर घमासान के बाद बगावत रोकना चुनौती बनी हुई है।

बसपा-

ताकत- कैडर वोट पर भरोसा है। प्रत्याशी पहले घोषित कर अधिक प्रचार का मौका मिला है।

कमजाेरी- 25 साल बाद कद्दावर नेता रामवीर उपाध्याय के बिना पार्…

Related Articles

Back to top button